” मदहोशियाँ छाई हुई हैं ” !!
चकाचौंध है ,
सज़ धज ऐसी !
हम तो क्या ,
लुट गये परदेसी !
खुद में ही –
डूबे डूबे हो !
खामोशियाँ ढाई हुई हैं !!
दीवानों सा ,
चढ़ा खुमार है !
महकी बहकी ,
ये बहार है !
प्यासे प्यासे –
अधर कह रहे !
सरगोशियाँ चाही हुई हैं !!
ना सम्मोहन ,
वशीकरण है !
डूबा डूबा ,
जाये मन है !
दुनिया की अब –
खबर किसे है !
स्मृतियां मन भाई हुई हैं !!