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17 Jan 2021 · 1 min read

मत बांधो सरहदे मेरी

मत बाँधों सरहदें मेरी, मुझे पसंद है ऊँची उड़ान
अपना तो कोई धर्म नही ,कैसा फिर कोई भगवाँ
*
मस्त जिंदगी हो खुशियों भरी और हसीं ख्याल
गुमसुम जिंदगी को क्यों जीता ,फिर तू है इंसान
*
इंसान होकर मंदिर मस्जिद में ख़ुदा ढूढ़ने चले हो
चाहने वालों के तो दिल में ही होता उसका स्थान
*
मुझे बँधाना भी तौहीन तुम्हारे खुदा की है यारों
मुझे तो उड़ने को दिया उसने यह सारा आसमान
*
तुझे देखना है तो बन्द आँखें कर तुझे मिल जाएगा
कह गए मन्दिर मस्जिद में गीता वेद और कुरआन
*
अशोक अबोध बालक सा तू हाथ जोड़ करे बन्दगी
जिससे तुझे मोहब्बत वो ख़ुदा नहीं तुझसे अन्जान

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

Language: Hindi
1 Like · 336 Views
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