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2 Sep 2018 · 1 min read

मत पूछो कितनी मोहब्बत है

जब भी तुम मिलने आती थी
कितनी जल्दी वो मुलाकात गुजर जाती थी
प्यास बुझती नहीं बरसात गुजर जाती थी
तेरी यादों से दिल दुखता था
नींद आती नहीं और रात गुजर जाती थी
जब बरसात की रातो में बदन टूटता था
जाग उठती थी अजब सी ख्वाइसे अंगराई की
जब तेरे जुल्फों से बारिश की बुँदे टपकती थी
तेरे बदन से सौंधी मिट्टी की सुगंधे आती थी
गरजते बादल की बिजली तुझमे
तुझमे हर बारिश में नाचते मोर की छबि नजर आती थी
जब भी बिजली कड़कती थी
मेरा रोम- रोम तुझे याद करती थी
कैसे लिपट जाती थी तू मुझसे
जब जोरो से बादल फटती थी
सावन की हर बौछार सुहानी लगती थी
क्योकि उसने मेरे होठों को छुई थी
आज हम उन्ही बूंदो को ढूंढ़ रहे है
जो कभी तेरे लबो पर गिरी थी
बारिश की उन बूंदो से आवाज तुम्हारी आती थी
बादल जब गरजते थे दिल की धड़कन बढ़ जाती थी
दिल की हर इक धड़कन से आवाज तुम्हारी आती थी
जब तेज हवाएं चलती थी तो जान हमारी जाती थी
मौसम भी कातिल बारिश का और याद तुहारी आती थी
उन्ही यादों के सहारे अब वक्त गुजरता है
मत पूछो कितनी मोहब्बत है मुझे तुमसे
बारिश की बूँद भी अगर छू ले तुम्हे तो दिल में आग सी लग जाती थी

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