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6 Feb 2020 · 1 min read

मत दिखाओ ख़्वाब हमें झूठे

मत दिखाओ वो ख़्वाब जो पूरे नहीं हो सकते ,
तामिल जिनकी तुम ईमान से नहीं कर सकते ।

वायदे भी तुम क्या पूरे करोगे,है यह नामुमकिन ,
तोड़ते ही आए हो अब तक,निभा जो नहीं सकते ।

होंसले और हिम्मत से जीने की नसीहत देते हो,
मगर हिफाज़त तुम भी हमारी नहीं कर सकते ।

हम अपने ही वतन में डरे-सहमें से रहते हैं सदा ,
‘घर’ जिसे तुम कहते हो,घर बनातो नहीं सकते ।

हम इंसान कहाँ है साहब ! हम तो खिलौने है ,
तुम हर आदमी में इंसानियत जगा नहीं सकते ।

तुम्हारे इस ‘घर ‘में खुशी से जीने का हक़ नहीं हमें ,
तुम इस अंधे कानून से इंसाफ दिलवा नहीं सकते ।

तुम्हारी कथनी /करनी में फर्क है बहुत ही जायेदा ,
मत करो वो तमाम वायदे गर से निभा नहीं सकते ।

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