मत दिखाओ ख़्वाब हमें झूठे
मत दिखाओ वो ख़्वाब जो पूरे नहीं हो सकते ,
तामिल जिनकी तुम ईमान से नहीं कर सकते ।
वायदे भी तुम क्या पूरे करोगे,है यह नामुमकिन ,
तोड़ते ही आए हो अब तक,निभा जो नहीं सकते ।
होंसले और हिम्मत से जीने की नसीहत देते हो,
मगर हिफाज़त तुम भी हमारी नहीं कर सकते ।
हम अपने ही वतन में डरे-सहमें से रहते हैं सदा ,
‘घर’ जिसे तुम कहते हो,घर बनातो नहीं सकते ।
हम इंसान कहाँ है साहब ! हम तो खिलौने है ,
तुम हर आदमी में इंसानियत जगा नहीं सकते ।
तुम्हारे इस ‘घर ‘में खुशी से जीने का हक़ नहीं हमें ,
तुम इस अंधे कानून से इंसाफ दिलवा नहीं सकते ।
तुम्हारी कथनी /करनी में फर्क है बहुत ही जायेदा ,
मत करो वो तमाम वायदे गर से निभा नहीं सकते ।