मझधार में कश्ती है ना ठोर ठिकाना है
ग़ज़ल/गीतिका
दिनांक ३/६/२१
वाद्विभक्ती 24 मात्रिक, मापनीयुक्त
२२१ १२२२/२२१ १२२२
मझधार में कश्ती है ना ठोर ठिकाना है।
मिलते थे मुहब्बत से गुज़रा वो ज़माना है।(१)
अब लोग लगे खुद में चिंता न पडौसी की,
ये जीस्त हुई तन्हा तन्हा ही बिताना है।(२)
हर शाम ये महफ़िल की कटती ही नहीं अब तो
मिलते ही नहीं अब वो ये झूठ बहाना है।(३)
(देखें कोरोना और चीन के परिप्रेक्ष्य में)
बरपी है ज़माने पर इक कीट की आफत अब
दुनिया ये गमी में है अब हमको हॅसाना है।(४)
(कीट- मतलब कोरोना)
वो घात में हैं अब भी दुनिया को मिटाने की
सबका है खुदा मालिक दुनिया को चलाना है।(५)
वो लाख करे कोशिश दुनिया को दबाने की,
अल्लाह हों मेहरबां तो क्या ख़ाक दबाना है।(६)
दुनिया में विविधता है वो दक्ष मदारी है,
दुनिया ये अटल तेरी नायाब खजाना है।(७)
? अटल मुरादाबादी ?