मजबूत ईरादे
होती है चाह
हर किसी की
हो औलाद
उसकी मजबूत
लोह जैसी
बनता है
लोहा तप कर
मजबूत
कभी हथियार
तो कभी
बनाता है
दुश्मन से
निपटाने को
होशियार
रहता है
सोना
छिप कर
तिजोरी में
लेता है
लोहा
खुल कर
दुश्मन से
लोहा
रखो अपने
ईरादे
लोहे से मजबूत
फिर न चुनौती
पहाड़ की
या समुन्दर की
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल