मजदूर
दिवस पर विशेष
मजदूर
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शिव शंकर के जैसे हर दिन
विष का पान है करता वह,
परिस्थिति हो चाहे जैसी
हर विपदा से लड़ता वह।
कड़ी धूप में धू – धू जलता
पत्थर तोड़ता जाता है,
हर मुश्किल कर सिरोधार्य
दारुण दुख वह पाता है।
अपने कभी न दुख सह पायें
सबका कष्ट है हरता वह,
परिस्थिति हो चाहे जैसी
हर विपदा से लड़ता वह।
एक मजदूर का जीवन ऐसा
जैसे सुरसरि की धारा,
खुद मैली होकर भी गंगा
सबका पाप हरे सारा।
क्षुधा से होकर व्याकुल भी
अपनों का पेट है भरता वह,
परिस्थिति हो चाहे जैसी
हर विपदा से लड़ता वह।
आँधी हो तुफान चले चाहे
कहां कभी घबराता है,
बीच राह पर्वत आ जाये
वह उससे भी लड़ जाता है।
पर्वत का भी सीना चीर कर
मार्ग प्रसस्त है करता वह,
परिस्थिति हो चाहे जैसी
हर विपदा से लड़ता वह।
एक श्रमिक की व्यथा है क्या
कब दुनिया ने पहचाना है,
उसके हृदय दर्द हैं कितने
नहीं किसी ने जाना है।
अपना दर्द छुपाकर ही तो
घर में खुशियां भरता वह,
परिस्थिति हो चाहे जैसी
हर विपदा से लड़ता वह।
………….?✒
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार…….845455