Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 May 2020 · 3 min read

मजदूर

हाथ खाली पेट खाली जिंदगी का सफर
कभी पगडंडियों पर कभी राजपथ पर
गांव जाने के लिए वह रात दिन चलता रहा
करता रहा मजबूर मानस मौत का सफर!

ना दिवाली ना दशहरा ना रंगों का त्यौहार
चल पड़ा मजदूर फिर भी गांव का लाचार
पेट पर भारी पड़ा महामारी बड़ी कोरोना
दौड़ता गांव में बूढ़े मां बाप और परिवार!

खींच लाई थी जो मजबूरी जिन्हें इन शहरों को
देखना पड़ेगा मौत का मंजर उन्हीं नजरों को
जान पर बन आई है अब पेट की चिंता कहां
रोक ना पाई मजबूरी भी चल दिए फिर गांव को!

ना भूख की चिंता ना प्यास का जतन
चल दिए वह गांव को बांध के कफ़न
रोक ना पाया कदम वो पांव का छाला
करते रहे सफर और तपता रहा गगन!

गोद मे नवजात ले चलती रही मां
बाप के कांधे पे बैठा रहा मुन्ना
पेट का बोझ पीठ पर लादा रहा
अंजान रास्तों से गुजरता रहा कारवां!

होठ फटने लगे पेट के चूल्हे जले
फटी नजरें ढूंढती रही दो निवाले
जलता भुवन झूलसते बदन चलता रहा
लड़खड़ाते कदम प्यास से सांसे जले!

भूख से बिलखती रही वह दूधमुही बच्ची
दो रोटी के अभाव में सुख गई मां की छाती
कौन सा जतन करें यह कैसा वक्त आ गया
थपकी दे मना रही सुखी छाती को पिलाती!

दूर तक नजर नहीं आ रही आश की कोई किरण
सोच रही है माँ कैसे चुकाऊंगी दूध का वो ऋण
उलझनें है बढ रही है पांव लड़खड़ाते बढ रहा
खुद से ही लड़ रही जीवन संघर्ष बना है रण !

मजबूरी के संघर्ष पथ पर बढ चला मजदूर
कौन जानता यह जिंदगी या मौत का सफर
होश में भी ना रहा थकन का ऐसा नशा चढ़ा
कहां पता था उन्हें सो रहे है मौत की सेज पर!

जिस रोटी के जुगाड़ में शहर आ गया मजदूर
बेबसी ऐसी हुई मिला ना उन्हें रोटी का दो कवर
रोटी बिखरी कहीं ,कहीं जिस्म है बिखरा पड़ा
चिता पर उसकी रोटियां अपनी सेकते सियासतदार !

छीन लिया हक भी परिवार और पुत्र का
बांधा सीमाओं ने पहुंचा ना शव मजदूर का
मुखाग्नि भी नहीं मिली पुत्र या पिता का
संस्कार सब विहीन हुए प्रकोप महामारी का !

मौन कहां सियासत रही डिबेट रोज हो रहे
मजदूरों की मौत पर फरमान जारी हो रहे
कोई कहता जहां हो वहीं रहो कोई उन्हें भेज रहा
कोई उन्हें मारता कोई दुत्कारता जिस्म से लहू बह रहे!

रोज नियम बदल रहे किस्मत उनकी वही रही
भूख प्यास को लिए जिंदगी सेल्टर होम में कट रही
जो कभी जानवरों का घर था अब मानव उसमें रह रहा
इसी बहाने ही सही सियासतदारो की सियासत चल रही!

जैसे जैसे लोग है वैसी वैसी व्यवस्था रही
ट्रेन से किसी को,प्लेन से लाने की हलचल रही
मजबूरी का फायदा उठा दो का चार किराया वसूल रहा
ऐसी नीती चला ही पांच ट्रिलियन की व्यवस्था हो रही!

कहीं पंजीकरण के नाम पर लहू-लुहान हुए
कही सियासत की चाल से हलकान हुए
पहले मैं की चाह में मजदूरों में होड़ रहा
दिखावे की सहानुभूति में पक्ष और विपक्ष हुए!

अब सियासत है बिछ गई मजदूरों की लाश पर
मानवता शर्मसार हुई राजनीतिक विषात पर
सत्ता की सतरंज पर हर चाल कोई चल रहा
लोकतंत्र का सब कुछ नीलाम हुआ राज्य तंत्र पर!

चीर हरण हो गया मां भारती भी सोच रही
ऐसे अपमान पर सत्येंद्र बिहारी की आंखें है रो रही
दोष उतना ही है पांडव का जितना था कौरव का
चीर हरण रोकने को प्रतीक्षा क्या मधुसूदन की हो रही?

*******************************************
सत्येंद्र प्रसाद साह (सत्येंद्र बिहारी)
*******************************************

Language: Hindi
2 Likes · 265 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Two scarred souls and the seashore, was it a glorious beginning?
Two scarred souls and the seashore, was it a glorious beginning?
Manisha Manjari
3226.*पूर्णिका*
3226.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शॉल (Shawl)
शॉल (Shawl)
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
नहीं हूं...
नहीं हूं...
Srishty Bansal
वाह मेरा देश किधर जा रहा है!
वाह मेरा देश किधर जा रहा है!
कृष्ण मलिक अम्बाला
मैं बंजारा बन जाऊं
मैं बंजारा बन जाऊं
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
गुरु मेरा मान अभिमान है
गुरु मेरा मान अभिमान है
Harminder Kaur
ये इंसानी फ़ितरत है जनाब !
ये इंसानी फ़ितरत है जनाब !
पूर्वार्थ
■ स्लो-गन बोले तो धीमी बंदूक। 😊
■ स्लो-गन बोले तो धीमी बंदूक। 😊
*Author प्रणय प्रभात*
अपनी क्षमता का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना ही इस दुनिया में सब
अपनी क्षमता का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाना ही इस दुनिया में सब
Paras Nath Jha
सुनो...
सुनो...
हिमांशु Kulshrestha
तन प्रसन्न - व्यायाम से
तन प्रसन्न - व्यायाम से
Sanjay ' शून्य'
*समृद्ध भारत बनायें*
*समृद्ध भारत बनायें*
Poonam Matia
लड़कियां जिसका भविष्य बना होता है उन्हीं के साथ अपना रिश्ता
लड़कियां जिसका भविष्य बना होता है उन्हीं के साथ अपना रिश्ता
Rj Anand Prajapati
* भावना में *
* भावना में *
surenderpal vaidya
रिश्तों के मायने
रिश्तों के मायने
Rajni kapoor
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
प्रमेय
प्रमेय
DR ARUN KUMAR SHASTRI
अधूरा प्रयास
अधूरा प्रयास
Sûrëkhâ Rãthí
पर्यावरण
पर्यावरण
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
दर्द
दर्द
SHAMA PARVEEN
घोंसले
घोंसले
Dr P K Shukla
फितरत
फितरत
Bodhisatva kastooriya
तेरे लिखे में आग लगे / © MUSAFIR BAITHA
तेरे लिखे में आग लगे / © MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
नहीं, बिल्कुल नहीं
नहीं, बिल्कुल नहीं
gurudeenverma198
मेरा तोता
मेरा तोता
Kanchan Khanna
दोहे तरुण के।
दोहे तरुण के।
Pankaj sharma Tarun
"पापा की परी"
Yogendra Chaturwedi
अपनों की ठांव .....
अपनों की ठांव .....
Awadhesh Kumar Singh
देने तो आया था मैं उसको कान का झुमका,
देने तो आया था मैं उसको कान का झुमका,
Vishal babu (vishu)
Loading...