Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Jun 2017 · 5 min read

मइनसे के पीरा [छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह की समीक्षा]

छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह : मइनसे के पीरा : प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संग्रह : प्रकाशक – छ. लेखक संघ सरिया
MAINSE KE PEERA पुस्तक मूल्य : 25 /– संस्करण वर्ष : 2000
मइनसे के पीरा जन्य हाइकु :   समीक्षक – प्रो. आदित्य प्रताप सिंह
__________________________________________________

         हाइकु का जापानी अर्थ है – नट् भंगिमा । प्रायः वह 05-07-05 के ओंजी (Onji)  क्रम में लिखा जाता है । किन्तु वहाँ इसके अपवाद भी सह्य हैं । जापानी में फ्री हाइकु भी खूब लिखे गये हैं, पर नए मुल्ले सड़ी प्याज खाते हैं । तथाकथित कट्टर हिंदी हाइकुवादी 05-07-05 के वर्णक्रम के अलकायदा के कैदी हैं । “दीपक” के यहाँ ऐसा सुन्नीपन नहीं है । उन्होंने 05-07-05, 05-08-05, 05-09-05 वर्णक्रम में हाइकु/हायकू लिखे हैं । यह नयी दिशा और प्रस्थान का सूचक है । कवि ने 05-07-05 के लिए भावों की हत्या नहीं की है । ऐसा करने से हिंदी हाइकु “हाइकु” न रह कर हाइकु की काल कोठरी बन जाते हैं – कविता की कत्लगाह । मैंने 1966 में छत्तीसगढ़ी और गोंडी बघेली के मिश्रित रूप में 25 हायकू लिखे थे । किंतु दीपक ने ठेठ छत्तीसगढ़ी में , यह संकलन “मइनसे के पीरा” नाम से रचा है । जहाँ तक मुझे विदित है, यह ठेठ छत्तीसगढ़ी का प्रथम हाइकु संकलन है । यह स्वागत योग्य है ।
                “पीरा” दीपक के संकलन का मेरु है । पीरा से ही मानव प्राणियों का सुमेरु है । हाइकु संकीर्ण सनकी क्षणिका मात्र नहीं , वह क्षण के सांस में विकास का , मानव का भूत वर्तमान और भविष्य का त्रिक है । त्रिपुण्ड । यथा —-
                                     हँसा  बंदर
                               हुआ आदमी रोया
                                  विभू विकसा ।
      यहाँ हँसा – रोया विकसा तीन क्रियाएँ हैं । मनुष्य और मनुष्यता का विकास (01) बंदर, (02) आदमी, (03) विभू में यह हाइकु का वामन समेटता है । आदमी रोया तब विभू (देव) हुआ ।
      दीपक ने हाइकु लिखे हैं और सिनरियू (व्यंग्य) भी उनके कलन के केन्द्र में “पीरा” है । पीरा से ही आदमी जीवित हीरा होता है । निर्जीव हीरा से महत्तर ।
      दीपक के हाइकु पढ़ने, सुनने और गुनने से लगता है कि उनमें उत्तम हायकूकार की प्रतिभा प्रच्छन्न है । हिंदी में ढेरों हाइकु संकलन हैं, पर अधिकांश हाइकु/हायकू के लिए कच्चे माल हैं, खाद हैं, वे हायकू या हाइकु नहीं । अनेक नामों से हाइकु हजारों लोगों द्वारा लिखे जा रहे हैं, पर लेवलों से क्या होता है ? हाइकु तभी सार्थक होते हैं, होंगे, जब वे दूज के चाँद में पूनों की झलक पैदा करें – मोती में समुद्र की छवि । हायकू का देवता साधारण के असाधारणत्व में है । “अरुंधती” ने इसे God of small things कहा है ।
          दीपक जी ने मजे में हाइकु कहे और लिखे हैं —
                               (01) बापू के फोटू
                                  आफिस मा बुहाथे –
                                      ओकर आँसू ।
                                        ☆☆☆
                                (02) गमकत हे 
                                  संगी के मया अऊ
                                    भूईं के माटी ।
                                         ☆☆☆
                                (03) विकट रात
                                   एक दीया बताथे
                                    ओला औकात ।
                                         ☆☆☆
           विकट रात – तिमिर बिम्ब है और एक दीया उसका विरोधी आलोक बिम्ब है — जो रात को उसकी औकात बता देता है । संभवतः यह संकलन का सर्वश्रेष्ठ हायकु है : सफल और सार्थक भी । प्रायः हिंदी और गुजराती में हइकु, हायकू या हाइकु नाम से लिखे गये हैं पर उनमें विरोधी बिम्बों तीखी आँखों की भंगिमा या स्पंदों की कमी खलती है । दीपक छत्यीसगढ़ी का हायकू दीपक है । कहीं कहीं उनके मुक्तक-मुक्ता के तेवर देखते बनते हैं —-
                            देवता रीझे
                                       मनखे का चीज ए,
                                                    पथरा सीझे ।
         यहाँ “अरथ अमित, आखर थोरे” वाली बात है । यही तो हाइकु का मर्म है । “पथरा सीझे” क्या कहना है । बहुत खूब । यह हाइकु त्रिवाक्यांशी है —– द्विक्रिय भी । रीझे और सीझे दो क्रियाएं हैं । सीझे शब्द में कवि बहुत सी अर्थ गूंजें बरामद कर लाया है । वह यहाँ मानव की गरिमा और महिमा स्थापित करने में सफल है । वास्तव ऐसे (हाइकु/हायकू) लिख पाना यह सूचित करता है कि दीपक का भविष्य उज्ज्वल है । यह निविड़ निशा के लिए चुनौति है । रात की आँख में किरकिरी है और उसके कवि की आँखों में “मइनसे के पीरा” की किरकिरी ( A graind of sand in eye ) है —  यह मौलिक पीरा ही उनकी प्रेरणा है । शक्ति है ।
            दीपक जी ने एक वाक्य के दो वाक्यांशी और त्रिवाक्यांशी हाइकु भी लिखे हैं । त्रिवाक्यांशी हाइकु उत्तम होते हैं । दो वाक्यांशी मध्यम और एक वाक्यांशी अधम । उनके तीन क्रियाओं का ( त्रिवाक्यांशी हाइकु ) है । यथा ——
                             कहे मा कछू
                                      अऊ जब देखबे
                                                करे मा कछू ।
          यहाँ कहे – देखबे और करे तीन क्रियाएँ – तीन – पदांश रचती हैं । कहीं – कहीं उनके हाइकुओं की सहज बक्रता मन मोह लेती है —-
                                                 दिल के बिल
                                       निकरथे कविता
                               अरे मुसवा !
             यह हाइकु अक्रिय और सक्रिय का निदर्शन है । साथ में सचित्र रुपकांश भी । दूसरा रुपकांश और लुप्तोपमा से माँ का सुप्त उत्प्रेक्षण ध्वनित और शिल्पित हुआ है ——
                        जाड़े मा ओस             ( आँसू लुप्तोपमा )
                        प्रकृति महतारी            ( रूपक )
                          बिखेर दिस ।             ( मानो )
             दीपक कहीं-कहीं विभावना ( अलंकार ) द्वारा रौद्र ( क्रोध ) की भावना ध्वनित कर देते हैं — सानुभाव और सहाव । ऐसी चेष्टाएँ —– विभाव – भाव और अनुभाव को संकलित कर लाती हैं —-
                          अब्बड़ रोस
                                    बिन गोड़ मा साँप
                                                  कूदय लेथे ।
        ऐसे हायकु हिंदी में कम ही हैं । यहाँ अद्भूत ( भयांश ) और रौद्रांश के साथ भावना और विभावना की अकृत्रिम ( अलंकार ) ध्वनि है ।
              कहीं – कहीं भावोष्णा और अनुभूत के चित्रांश “दीपक” के यहाँ प्रयुक्त हुए हैं ——-
                                                   देखत रह..
                                       बुहा जाही ऊमर
                         ह. ह. नदिया… ।
             ह ह ( अहह ) शब्द यहाँ दंशक है —- जिसे जापानी में “किरेजि” कहते हैं । तथाकथित हिन्दी हाइकु में जापानी हाइकु का साहित्य है । केवल उसका ट्रेडमार्क है । प्रसन्नता की बात है कि दीपक के यहाँ जापानी हाइकु के गुणों की कुछ झलकियाँ हैं । मर्म छवियाँ हैं । उनके ऐसे हाइकु / हायकू ही “गुदड़ी के लाल” हैं । हिन्दी हाइकु के कचरों के ढेर में ये दीप्त स्फुलिंग हैं । निष्कर्ष है कि हाइकु के नाम पर जो निशा स्तूप है उसमें दीपक सूर्य के सूचक हैं ।
                              
□ प्रो. आदित्य प्रताप सिंह
                         रींवा ( म.प्र. )
PIN – 486001
__________________________________________________

Language: Hindi
1062 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अखंड भारत
अखंड भारत
विजय कुमार अग्रवाल
जिंदगी
जिंदगी
अखिलेश 'अखिल'
आपस की गलतफहमियों को काटते चलो।
आपस की गलतफहमियों को काटते चलो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
जल प्रदूषण दुःख की है खबर
जल प्रदूषण दुःख की है खबर
Buddha Prakash
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
■ मुफ़्तखोरों और जुमलेबाज़ों का मुल्क़।
■ मुफ़्तखोरों और जुमलेबाज़ों का मुल्क़।
*Author प्रणय प्रभात*
डिग्रीया तो बस तालीम के खर्चे की रसीदें है,
डिग्रीया तो बस तालीम के खर्चे की रसीदें है,
Vishal babu (vishu)
मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
Devesh Bharadwaj
तुम मेरी
तुम मेरी
Dr fauzia Naseem shad
Dr Arun Kumar Shastri
Dr Arun Kumar Shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
माईया दौड़ी आए
माईया दौड़ी आए
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
कैसे हमसे प्यार करोगे
कैसे हमसे प्यार करोगे
KAVI BHOLE PRASAD NEMA CHANCHAL
कानून?
कानून?
nagarsumit326
परीक्षा है सर पर..!
परीक्षा है सर पर..!
भवेश
सिर की सफेदी
सिर की सफेदी
Khajan Singh Nain
दिल
दिल
Er. Sanjay Shrivastava
क्यूँ भागती हैं औरतें
क्यूँ भागती हैं औरतें
Pratibha Pandey
*खो दिया सुख चैन तेरी चाह मे*
*खो दिया सुख चैन तेरी चाह मे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रिश्ते-नाते स्वार्थ के,
रिश्ते-नाते स्वार्थ के,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
3050.*पूर्णिका*
3050.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*बीमारी जो आई है, यह थोड़े दिन की बातें हैं (हिंदी गजल)*
*बीमारी जो आई है, यह थोड़े दिन की बातें हैं (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
दोहे तरुण के।
दोहे तरुण के।
Pankaj sharma Tarun
सुरक्षित भविष्य
सुरक्षित भविष्य
Dr. Pradeep Kumar Sharma
अपनी बेटी को
अपनी बेटी को
gurudeenverma198
सब की नकल की जा सकती है,
सब की नकल की जा सकती है,
Shubham Pandey (S P)
" मैं कांटा हूँ, तूं है गुलाब सा "
Aarti sirsat
भुला ना सका
भुला ना सका
Dr. Mulla Adam Ali
*** सागर की लहरें....! ***
*** सागर की लहरें....! ***
VEDANTA PATEL
News
News
बुलंद न्यूज़ news
पति पत्नी में परस्पर हो प्यार और सम्मान,
पति पत्नी में परस्पर हो प्यार और सम्मान,
ओनिका सेतिया 'अनु '
Loading...