मंशा
तुझे नर्म नहीं ,सख्त चाहती हु।
चुभन जिसकी कभी भुला न सकु ।
तुझे आराम नही व्यस्त चाहती हु,
जो वक़्त मिले कीमती उसी में खुद को तेरे साथ चाहती हु।
तुझे मंजिल नहीं,सफर चाहती हु,
चलना संग, हाथो में हाथ चाहती हु ।
तुझे उजली सुबह नही ,काली घनी रात चाहती हु
बिताना जिस संग सारी कायनात चाहती हु।
क्षणिक ख़ुशी की ख्वाहिश नही
साथ दो पल नही ,ता उम्र चाहती हु।
तुझे जिस्म नही ,रूह चाहती हु
साथ बिताना ,दुनिया का दस्तूर चाहती हु!!
लफ़्ज़ों की कमी नही,पर आँखों से छलके जज्बात चाहती हु ।।