Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Aug 2017 · 5 min read

मंझली बेटी.

मँझली बेटी—डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
Quote

Post
by admin » Mon Aug 28, 2017 4:08 pm
मँझली बेटी
बंजारों की दुनिया अद्भुत होती है । न भविष्य की चिंता न अतीत का दुख होता है , उन्हें । बस वर्तमान मे सुखी संसार गाता –बजाता , गुन गुनाता अपना जीवन खुशी –खुशी बिताया करता है । उनके आने से वीरानों मे भी जिंदगी आबाद हो जाती है । जंगल में मंगल मनाने का अनूठा उदाहरण ये सब प्रस्तुत करते हैं ।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित शंकर गढ़ एक पथरीला रेतीला गाँव , जहां जेठ की दुपहरी में बहती लू के साथ –साथ रेत के बवंडर उठा करते हैं ।जब तापमान अधिकतम होता है । तब पसीने से चिपचिपाते शरीर को राहत देने के लिए न वृक्षों की छांव होती है न विद्धुत का प्रवाह , जल के अभाव में स्नान करना भी असंभव हो जाता है । इन्ही रेतीले इलाके में ये जन जातियाँ अपना बसेरा रोजी रोटी की तलाश में बनाती हैं । और भरी दोपहरी हो या सांझ की शीतलता पत्थर तोड़ने का इनका कार्य निरंतर चला करता है । ठेकेदारों के निर्देशानुसार ये बंजारे अपने नन्हें- मुन्होंको बांस की टोकरी में कपड़ा बिछा कर खेलने के लिए भगवान भरोसे छोड़ देती है , और हाड़ –तोड़ मेहनत कर ठेकेदारों की तिजोरी भरने का कम करते हैं ।
जीवन कितना भी जीवट का हो परंतु उसकी एक परंपरा होनी चाहिए । एक नियम होना चाहिए । परंपरा और नियमों का निर्वाहन जीवन जीने की कला सिखाता है , जीवन में आनंद का संचार करता है । इसीलिए अपना देश छोड़ कर आए ये बंजारे अपनी परंपरा एवम जीवन शैली को निरंतर अपनाए रहते हैं । एवम दूर –सुदूर तक अपनी वेषभूषा, नृत्य भाषा एवम कला के लिए जाने जाते हैं ।
इन्ही बंजारो की एक टोली हमारे गाँव मे भी आई हुई थी । ठाकुर बहोरी सिंह एक ठेकेदार थे , उनका खान-खदानों का ठेका लेकर पत्थर –गिट्टी तोड़ वाना काम था । उनके चार लड़के व तीन लड़किया थीं । लड़के ग्रेजुएसन करके अपना –अपना व्यवसाय करते थे । उनकी तीनों बेटियो मे दो बेटियाँ विवाहित थी । परंतु उनमेसे मँझली बेटी ने अविवाहित रह कर अपने समस्त परिवार को एक सूत्र में बांध रखा था । मँझली बेटी अत्यंत मेधावी थी । उसने एम ए सोसिओलोगी मे एवम साइकॉलजी मे भी कर लिया था । वह एक इंटर कॉलेज मे प्रवक्ता के पद पर कार्यरत थी । उसने पी एच डी की पढ़ाई भी पूरी कर ली थी । परंतु उसका जीवन शिक्षण कार्य करके भी अशांत था । शिक्षा के गिरते स्तर , शिक्षकों की गरिमा एवं नैतिक मूल्यों का पतन उसको इस दल –दल से निकलने के लिए बैचेन कर रहा था ।उसका मंतव्य प्रशासनिक सेवा में जाने का था । इसके लिए वह निरंतर प्रयास रत थी। उसने कई बार प्री एवं मेंस के लिए परीक्षाये पास की थी । परंतु हाय रे दुर्भाग्य !इंटर व्यू मे कभी एक नंबर या दो नंबर से उसका चयन रुक जाता था । उसकी दृढ़ता व इच्छा शक्ति हर असफलता के बाद और प्रबल हो जाती थी ।
विधि का विधान कहता है कि यदि मजबूत महल बनाना है तो नीव गहरी होनी चाहिए । हमारी मँझली बेटी का यही दुर्भाग्य था !बचपन से बहोरी सिंह ने बढ़े परिवार , गरीबी एवं तंगी से तंग आकर अपनी मँझली बेटी को परवरिश हेतु मौसा एवं मौसी कमला को सौप दिया था । मौसा निसंतान थे अत :उन्होने मँझली को खुशी –खुशी स्वीकार कर लिया । मँझली बेटी बचपन से अपने माता –पिता के प्यार व संरक्षण से वंचित हो गयी थी । तब मँझली केवल तीन साल की थी , उसे अपने पराए का भी ज्ञान नहीं था । मौसी के पास रहते ग्रामीण परिवेश मे उसका बचपन नष्ट हो गया । नन्हें मासूम हाथ हसिया लेकर कभी घास काटते , कभी चारा , कभी बारिश मे धान कि बोवाई करते कभी फसल पकने पर फसल काटने का काम भी करते थे । घरेलू कार्य करते , गीतों को गुन गुनाते कब वह समझदार हो गयी , उसे पता ही नहीं चला । जब उसे ध्यान आया बहुत देर हो चुकी थी । उसकी शैक्षिक योग्यता लगभग शून्य थी । वह हाइ स्कूल मे फेल हो गयी थी । उसका भविष्य अंधकार मय हो गया था । उसी बरस मँझली बेटी कि माँ चल बसी थी उसे कैंसर था । कैंसर लाइलाज रोग नहीं है , परंतु धन के अभाव , संसाधनो कि कमी कि बजह से उसका समुचित उपचार नहीं हो पाया था । माँ के स्वर्गवासी होते ही कमला मौसी ने मँझली को अपने पैतृक घर वापस भेज दिया ।
वे बच्चे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं जिन्हे अपने माता –पिता का प्यार मिलता है । माँ के हाथ की रूखी –सूखी रोटी खाकर मन को जो सुकून मिलता है वह कहींनहीं मिलता है । माँ की ममता का स्नेह भरा हाथ सिर पर फेरते ही सारा क्लेश दूर हो जाता है । माँ अपने बच्चो की सबसे बड़ी सलाहकार एवं मित्र होती है । अपने मन की व्यथा उससे बढ़ कर कौन सुन सकता है । मँझली बेटी के जीवन का यही पक्ष शून्य था । पिता केवल संबल एवं संरक्षण दे सकता है । मँझली बेटी को अपने पिता का संरक्षण तो मिला परंतु अपने जीवन का मार्ग दर्शन उसने स्वयम किया था ।
अपने घर के शिक्षित वातावरण मे उसे उपेक्षा एवं उपहास का सामना करना पड़ा । उसके आत्मसम्मान को निरंतर आहत किया गया । मँझली ने ठान लिया कि वह पढ़ –लिख कर अपने पैरो पर अवश्य खड़ी होगी । उसने लगन से पढ़ना शुरू किया । स्वाध्याय ने उसकी मेधा को सशक्त बनाया । आज वह मँझली बेटी अपने परिवार की आदर्श बेटी है । अपने से बड़ी एवं छोटी बहन का विवाह उसके प्रयासो से ही संभव हुआ । अब वह 35 वर्ष की हो गयी थी । जीवन के इस मुकाम पर तमाम जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद उसे एक जीवन साथी की आवश्यकता थी , जो उसके सुख –दुख का साथी बन सके । एवं गंतव्य तक उसकी जीवन नैया का खेवनहार हो ।
समय के इस अंधकार को दूर के लिए ठाकुर बहोरी सिंह ने उसके जीवन साथी के तौर पर एक सुंदर शिक्षित मेधावी लड़का पसंद किया। जीवन के इस उतर्राद्ध मे बहोरी सिंह को मँझली बेटी के प्रति अपने उत्तर दायित्व का अहसास हुआ और गत वर्ष शीत कल उसने मँझली बेटी के हाथ पीले कर दिये । मँझली बेटी ने बहुत दिन के बाद सुख का चेहरा देखा था । उसकी दृढ़ इच्छा शक्ति व कुशाग्र बुद्धि के कारण उसका चयन प्रशासनिक सेवा मे उप जिलाधिकारी के पद पर हो गया । आज उसके पास शासन , शक्ति शिक्षाएवं विवेक का अकूत भंडार है जिसके द्वारा वह भट्टे पर काम करने वाले बंजारों की बेटियो का जीवन शिक्षा की व्यवस्था से रोशन करती है । और अतीत को भूल कर वर्तमान की कठिनयो को सुलझाते अक्सर मिल जाती है ।
27-08-2017 डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
इंचार्ज ब्लड बैंक , सीतापुर

Language: Hindi
646 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
The bestest education one can deliver is  humanity and achie
The bestest education one can deliver is humanity and achie
Nupur Pathak
#कृतज्ञतापूर्ण_नमन
#कृतज्ञतापूर्ण_नमन
*Author प्रणय प्रभात*
"दस्तूर"
Dr. Kishan tandon kranti
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
Mukesh Kumar Sonkar
(वक्त)
(वक्त)
Sangeeta Beniwal
*पिचकारी 【कुंडलिया】*
*पिचकारी 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
अन्तर्मन की विषम वेदना
अन्तर्मन की विषम वेदना
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
पयसी
पयसी
DR ARUN KUMAR SHASTRI
2389.पूर्णिका
2389.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मेरी शायरी
मेरी शायरी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
प्रेम छिपाये ना छिपे
प्रेम छिपाये ना छिपे
शेखर सिंह
बिटिया की जन्मकथा / मुसाफ़िर बैठा
बिटिया की जन्मकथा / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
और ज़रा भी नहीं सोचते हम
और ज़रा भी नहीं सोचते हम
Surinder blackpen
परिवार
परिवार
डॉ० रोहित कौशिक
शांत सा जीवन
शांत सा जीवन
Dr fauzia Naseem shad
भीम आयेंगे आयेंगे भीम आयेंगे
भीम आयेंगे आयेंगे भीम आयेंगे
gurudeenverma198
खुदा रखे हमें चश्मे-बद से सदा दूर...
खुदा रखे हमें चश्मे-बद से सदा दूर...
shabina. Naaz
जीवन से पहले या जीवन के बाद
जीवन से पहले या जीवन के बाद
Mamta Singh Devaa
न जाने क्यों अक्सर चमकीले रैपर्स सी हुआ करती है ज़िन्दगी, मोइ
न जाने क्यों अक्सर चमकीले रैपर्स सी हुआ करती है ज़िन्दगी, मोइ
पूर्वार्थ
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
नहीं खुलती हैं उसकी खिड़कियाँ अब
Shweta Soni
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
बिना वजह जब हो ख़ुशी, दुवा करे प्रिय नेक।
आर.एस. 'प्रीतम'
व्यंग्य क्षणिकाएं
व्यंग्य क्षणिकाएं
Suryakant Dwivedi
दीपावली
दीपावली
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
जो गिर गिर कर उठ जाते है, जो मुश्किल से न घबराते है,
जो गिर गिर कर उठ जाते है, जो मुश्किल से न घबराते है,
अनूप अम्बर
Hum bhi rang birange phoolo ki tarah hote
Hum bhi rang birange phoolo ki tarah hote
Sakshi Tripathi
*जिंदगी के  हाथो वफ़ा मजबूर हुई*
*जिंदगी के हाथो वफ़ा मजबूर हुई*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
Rj Anand Prajapati
सुबह-सुबह की लालिमा
सुबह-सुबह की लालिमा
Neeraj Agarwal
लइका ल लगव नही जवान तै खाले मलाई
लइका ल लगव नही जवान तै खाले मलाई
Ranjeet kumar patre
कविता: घर घर तिरंगा हो।
कविता: घर घर तिरंगा हो।
Rajesh Kumar Arjun
Loading...