भेष में इंसान की हैवानियत है आज
विधा: गीतिका
रस-हास्य
आधार छंद –रूपमाला
समांत- आस ,अपदांत
मापनी— 2122 2122 2122 21
वक्त की काली घटा का हो रहा आभास।
फूल थे खुशबू भरे जो हो रहे निर्वास।।(१)
भेष में इंसान की हैवानियत है आज,
छूटती पहचान उसकी खो रहा विश्वास।(२)
कर लिया है आज कब्जा जो बवंडर बाज
झूठ की ही लेखनी से लिख रहे इतिहास।(३)
सत्य का आभास देकर बेचते हैं झूठ,
सांच को नहिं आंच होती दीखती बकवास।(४)
खा रही है अब अटल को एक चिंता आज
जो सदा थे बैक बैंचर अब बने हैं खास।(५)
?अटल मुरादाबादी ?
9650291108