भूलने की ज़िद
भुलाने की ज़िद तुम्हारी थी.
हमें क्यों रखा भुलाने वालो में.
शाम क़ातिल थी.
क्यू रखा हमदर्दी जताने वालो में.
बड़े मुख़तलिफ़ थे हम आपके चाहने वालो में.
हमें अपने खून का क़ातिल बना दिया।
जो थे कभी चाहने वालों में.
जो आंशुओ की छुवन में सहम जाया करते थे.
वो खंजर बना दी शाम.
इश्क़ के मंज़र बयां करने वाले उस्तादों ने.
लहूं तो गिरा नहीं एक बूँद भी इस ज़मीन पर.
हमें ही क़ातिल बनाया तेरे चाहने वालो ने.
उड़ेल दी जिस्म पर मतलबी ताबूत.
हमें बेड़ियों में बांधा था, तेरे आँखों के काजल ने.
अवधेश कुमार राय
धनबाद झारखण्ड