भूलने की अदा सीखी है..
अजामती रही है, मुझे तेरी यादें।
तू नहीं हरगिज़ नहीं मानु कैसे।
हमें आज़माती रही तेरी यादें..
लाख हम निकलने की कोशिश करे खुद से.
खुदा निकलने ही नहीं देती तेरी यादें। ….१
हर लफ़ज़ की बारगी से हमने मिटाई तेरी जुस्तजू,
ये मिटने ही नहीं देती ख्यालों की रूह.
सोचा था कभी शहर की हर एक यादों से नाता तोड़ दूंगा.
जहां पैबंद बानी तेरी यादें नाता तोड़ दूंगा 2
खुद की आज़माइश एक भूलनी ज़िद्द.
जिसे दिल में संभाल बैठा एक रूत लिए.
उसे हम क्या भूलाये ज़िद्द.
मगरूर थी हुक्काम बन हमसे वो नाचीज़।
खुदा निकलने ही नहीं देती तेरी यादें….3
अवधेश कुमार राय