— भिखारी कौन बनता है ? —
चलते फिरते घूमते
सब जगह नजर आ जाते हैं
यहाँ अच्छे खासे लोग भी
भिखारी बन जाते हैं
कभी स्टेशन , कभी बस अड्डे
कभी गली मोहल्ले,कभी
पास पड़ोस में ही आकर
बस जाते हैं
कभी कल्पना कर के देखो
कौन इनको भिखारी बनाते हैं
कोई भूख की खातिर, कोई
प्यास की खातिर, कोई जान बुझ कर
भिखारी बन जाते हैं
चलते फिरते हाथ पाँव के लोग
सब के सामने अनजान बन जाते हैं
बदल कर भेष वो , बन कामचोर
सब के सामने अपंग बन जाते हैं
देखा मैने उन मासूमो को सरे राह
बड़े बड़े लोग यह खेल रचाते हैं
देकर हाथ में नशे की चीजों को
उनकी जिन्दगी से खिलवाड़ कर जाते हैं
नहीं सुधरेगा यहाँ का प्राणी
जिसको बिन मेहनत दौलत मिल जाती है
क्यूं न बनेगा नशे और विलासिता का आदी
जब अंधे देने वाले ही उनके सामने बन जाते हैं
अजीत कुमार तलवार
मेरठ