Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jan 2017 · 3 min read

भारत की बेटी

भारत की बेटी

सोचा था बंजर भी उपजाऊ होगी,
जगत जननी की नई परिभाषा होगी|

पहले तो बेटियों को जन्म के बाद मारने का अधिकार था,
न अब बेटियों का जन्म ही धिक्कार है|

सोचा था ममतामयी मूर्ति का सम्मान होगा,
माँ के सपनों का एक संसार होगा।

पहले तो सती होने भ्रम मे मुक्ति पा लेती थी बेटियां,
और अब देहज की आग मे विधवा हुऐ बिना विधवा बन जाती है बेटियां|

हे भारत के नवयुवको अपने भविष्य के राही को मत मिटने दो,

महिला जाग्रती का संकल्प ले ममतामयी भारत का निर्माण करो|

निर्माण करो नव भारत का जिसमें खुशहाली हो,
हर आँगन मे बेटी की किलकारी हो,

प्राचीन गया वर्तमान भी चला जायेगा,
हर घर मे बेटी को मारा गया तो प्रत्येक इंसान विधुर हो जाएगा|

आने दो बेटियों को धरती पर,
मत देना कोई आशीर्वाद उन्हे
वरना कौन देगा गालियाँ
माँ-बहन के नाम पर|

कहाँ गई हे मानुष तेरी लज्जा को रखने वाली,
कभी तो दुर्गा, कभी लक्ष्मी, कभी बन गई वह काली||

आने दो बेटियों को धरती पर,
मत देना दान-देहज उन्हे
वरना कैसे जलाई जाएगी बेटियां,
पराये लोगो के बीच|

चले हम वर्तमान कि ओर नया पथ देखने को,
देहज ने विवश कर दिया जहाँ बेटी को जिन्दा जलने को|

आने दो बेटियो को इस धरा पर ,
पनपने दो भ्रूण उनके,
वरना कौन धारण करेगा
तुम्हारे बेटो के भ्रूण अपनी कोख मे|

ये देहज के लोभी हत्यारे नित्य नया अपराध करें,
धन पराया समझकर बेटी का ही व्यापार करे|

आने दो बेटियों को धरती पर
मत बजाना थाली चाहे
वरना कौन बजायेगा थाँलिया काँसे की,
अपने भाई -भतीजो के जन्म पर।

बेटी ने ही बन दुर्गा असुरो का संहार किया,
लक्ष्मी ने राष्ट्र प्रेम की खातिर प्राणों को वार दिया

बन गई हर बाला भवानी अंग्रेजो के प्रतिकार को
लेकिन हे मानुष तुने अपना वैभव मान लिया है स्त्री पर अत्याचार को।

मैने अखबार का एक काँलम पढा,
भ्रूण मिले है कचरे मे,
एक नही दो -चार।
कभी सोचा हमने उन कलिकिंत होती कोखों बारे मे,
जिसका कारण है ये आदम मनु के वंशज
एक आदमी ही जिम्मेदार है इस बात के लिऐ हर संभव।

सो गया तुम्हारा हे मानुष ममता के प्रति अमर प्रेम,
जिसके आँचल मे छिपकर बचपन मे खेला था आँख मिचौली का खेल,

उसका ही प्रतिकार करे
निज स्वार्थ हेतु उसके देह का व्यापार करे’
उसके अंग-अंग की मादकता से नित्य नये खिलवाड़ करे
यौवन को ही तु समझे ना समझे पीर पराई को,
भीख माँगती ये माताऐ
कहती खाना दे दो भुखी हूँ माई को।

हे!मानुष जब तुने अपने को खोता पाया ,
तब नारी ने ही आकर तुझको धर्य बधाया।

हालत देख बेटी की मेरा दिल तो भर आया,
भूल गये हम उसका वैभव जिसके आँचल मे सुख पाया।

दामनी का दंभ तो देखो
संपूर्ण देश को जगा गई
हो गई नभ मे लीन वह परी-सी
कुलषित मानवता के आगे।
धरती रोयी अम्बर रोया ब्राहमांड मे हाहाकार उठा,
जगी जब भारत की नारी तो संपूर्ण जहान जाग उठा।

सुन ले ऐ भारत तेरी लाज माँ ने ही बचाई है,
राष्ट्र प्रेम की खातिर अपने बेटों की बलि चढाई ह

बोझा ढोती ये माताए अपनी निक्रष्ठ जवानी मे
जितना भी लाती ये पैसा हे आदम उसे तु ले जाता मयखाने मे।
क्या कभी तुने सोचा इसके लिऐ कुछ करने को
जो मरे बिना ही लाश बन गई जिंदा जलने को।

मानव हो कर मानवता की बात करे हम,
और कुछ ना कर सके तो नारी का सम्मान करे हम।

कोमल कलम कठोर वर्णन कर दिल बहुत रोया मेरा,
मात: सहोदरा वामा तुम को अर्पित यह गान मेरा।

वैभव का गुणगान करे हम शत्-शत् कोटि नमन करे हम,
हे भारत की माता तुम पर प्राण न्योछावर करे हम॥

{ समाप्त}
लेखक: राहुल आरेज{मीना

Language: Hindi
703 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
उम्र का लिहाज
उम्र का लिहाज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
यहाँ श्रीराम लक्ष्मण को, कभी दशरथ खिलाते थे।
यहाँ श्रीराम लक्ष्मण को, कभी दशरथ खिलाते थे।
जगदीश शर्मा सहज
माधव मालती (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
माधव मालती (28 मात्रा ) मापनी युक्त मात्रिक
Subhash Singhai
दीपों की माला
दीपों की माला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फ़ितरत-ए-धूर्त
फ़ितरत-ए-धूर्त
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
विज्ञान का चमत्कार देखो,विज्ञान का चमत्कार देखो,
विज्ञान का चमत्कार देखो,विज्ञान का चमत्कार देखो,
पूर्वार्थ
* संसार में *
* संसार में *
surenderpal vaidya
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
नव वर्ष
नव वर्ष
RAKESH RAKESH
आज उम्मीद है के कल अच्छा होगा
आज उम्मीद है के कल अच्छा होगा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
कुछ पाने के लिए
कुछ पाने के लिए
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
थक गई हूं
थक गई हूं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
चाय की दुकान पर
चाय की दुकान पर
gurudeenverma198
बो रही हूं खाब
बो रही हूं खाब
Surinder blackpen
छन्द- सम वर्णिक छन्द
छन्द- सम वर्णिक छन्द " कीर्ति "
rekha mohan
■ आज का नमन्।।
■ आज का नमन्।।
*Author प्रणय प्रभात*
शीत की शब में .....
शीत की शब में .....
sushil sarna
प्रिय
प्रिय
The_dk_poetry
शीर्षक – वह दूब सी
शीर्षक – वह दूब सी
Manju sagar
बेटी
बेटी
Sushil chauhan
ये पल आएंगे
ये पल आएंगे
Srishty Bansal
प्रेम और दोस्ती में अंतर न समझाया जाए....
प्रेम और दोस्ती में अंतर न समझाया जाए....
Keshav kishor Kumar
पापा
पापा
Kanchan Khanna
युवा हृदय सम्राट : स्वामी विवेकानंद
युवा हृदय सम्राट : स्वामी विवेकानंद
Dr. Pradeep Kumar Sharma
विश्वास
विश्वास
विजय कुमार अग्रवाल
"मुश्किल वक़्त और दोस्त"
Lohit Tamta
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/38.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*लम्हा  प्यारा सा पल में  गुजर जाएगा*
*लम्हा प्यारा सा पल में गुजर जाएगा*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चंचल - मन पाता कहाँ , परमब्रह्म का बोध (कुंडलिया)
चंचल - मन पाता कहाँ , परमब्रह्म का बोध (कुंडलिया)
Ravi Prakash
ग़म बांटने गए थे उनसे दिल के,
ग़म बांटने गए थे उनसे दिल के,
ओसमणी साहू 'ओश'
Loading...