भारतीय समाजिक विचारधारा रोजगार के खिलाफ
भारतीय समाज एक मिश्रित समाज है जिसमे विस्व के लगभग सभी धर्मों के लोग निवास करते है बगैर किसी सांप्रदायिक कलह के। भारत भौगौलिक और सांस्कृतिक आधार पर कोई एक देश नही लगता बल्कि दोनों ही आधारों पर यह एक उपमहाद्वीप के सामान है किंतु इसकी संकृति और सभ्यता इसे एक बनाकर रखती है इसे जोड़े रखती है फिर चाहे आप मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू कश्मीर में महसूस करें या फिर ईसाई बहुल राज्य केरल और जनजातीय बहुल उत्तर पूर्वी राज्यों में ।
इस सम्पूर्ण भौगौलिक महाद्वीप पर बसने बाले सभी लोगों की सोच इसे एक देश का आकार देती है। यहाँ की सामाजिक सोच लगभग एक जैसी है यही कारण है जहाँ उत्तरी राज्यो में निम्न वर्ण के लोगो के साथ निम्न व्यवहार किया जाता है वही व्यवहार आपको संपूर्ण भारत में मिलेगा जो सामाजिक सोच उत्तर पूर्वी या केरल आदि राज्यो में देखने को मिलेगी वही सोच उत्तरी राज्यो में या पश्चिमी राज्यो में भी मिलेगी।
भारत की जनसंख्या 1अरब20 करोड़ से भी ज्यादा है और इतनी बड़ी आबादी के लिए रोजगार दिलाना कोई आसान बात नही है किंतु जितनी ज्यादा जनसँख्या होती है उतना ही बड़ा बाजार होता है उतनी ही बाजारिक मांग होती है किंतु भारतीय बाजार की कमी यही है कि यह अपनी मांग स्वयं के द्वारा पूरी नही कर पाता बल्कि विदेशी समान के आयत पर निर्भर रहता है।
अगर हम इसका कारण तलासें तो भारतीय समाज में आसानी से देखा एवं समझा जा सकता है।क्योंकि भारतीय समाज में भले ही सभी धर्मों और जातियों के लोग बसते हैं किंतु बहुसंख्यक जनसँख्या हिंदुओं की है और उन्ही की संकृति ही इस देश के सभी समाजों की मूल है फिर चाहे वह किसी भी धर्म से हो या जाति से ।
हिन्दू संस्कृति वर्ग विभाजन पर आधारित है जिसमे समाज को 4 वर्गों में बाँट दिया है । यह विभाजन जातिगत श्रेष्ठता के आधार पर है अर्थात उच्च वर्ग सामाजिक रूप से श्रेष्ठ एवं सुविधाभोगी है निम्न वर्गों की अपेक्षा। निम्न वर्ग जातिगत आधार पर भी निम्न श्रेणी में आता है और व्यवसाय के आधार पर भी अर्थात जो निम्न दर्जे का व्यवसाय समझा जाता है, उस वर्ग को करने बाली जाति।
जबकि सत्य तो यह है कि निम्न दर्जे का कोई भी व्यवसाय नही होता सभी समान रूप से सम्माननीय होते है और समाज ,देश और विस्व की जरूरत किन्तु भारतीय समाज ने इन व्यवसायों को दोनों ही प्रकार से निम्न श्रेणी में डालकर इसे अनिक्षुक व्यवसाय बना दिया है।
जिसकी वजह से प्रत्येक निम्न श्रेणी का व्यक्ति स्वयं को उच्च श्रेणी में लाने के लिए इस प्रकार के रोजगार से दूर भागना चाहता है और उच्च श्रेणी के व्यवसाय को अपनाना चाहता है और उच्च श्रेणी के लोग तो इसे अपनाने में ही अपनी तौहीन समझते है।
यही कारण है कि एक तरफ जहां इस प्रकार के रोजगार से लोग दूर भाग रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ इन व्यवसायों में तकनीकी विकास और नए प्रकार के इन्नोवेशन भी नही हो पा रहा है जिससे बेरोजगारी तो बढ़ ही रही है और इस प्रकार के व्यवसाय के लिए औद्योगिक एवं तकनीकी विकासभी नही हो पा रहा है। जिससे एक तरफ प्रत्यक्ष रोजगार प्रभावित हो रहा है वही तकनीकी एवं औद्योगिक अप्रत्यक्ष रोजगार का भी विकास नही हो पा रहा है जिस गति से होना चाहिए , केबल आयत पर ज्यादा निर्भर हैं । भविष्य में भी ऐसी सम्भवना कम ही है कि इन कामो में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार बढेगा क्योंकि जातिवाद की जड़ें इतनी गहरी है भविष्य में भी इनका उखड़ना आसान नही लगता।
जातिवाद की बजह से ये व्यवसाय समाज में गाली की तरह प्रयोग किए जाते है जैसे बढ़ई, लुहार, नाई, धोबी, चमार, भंगी,इत्यादि जबकि अंग्रेजी भाषा में इनके पर्यावाचियों को आराम से प्रयोग किया जाता है और इन कर्मकारों को अंग्रेजी उपनाम सुनने में कोई असम्मान भी महसूस नही होता क्योकि विदेशी सभ्यता ने इन कामो को भी व्यक्तिगत एवं सांस्थानिक रूप से बराबर सम्मान दिया है।
ये व्यवसाय किसी भी समाज के लिए उतातने ही जरूरी है जितने डॉक्टर,इंजीनियर,वकील, मैनेजर आदि। और ये व्यवसाय भी स्पेसलाइजेसन की तरह ही प्रयोग होते है क्योंकि बगैर स्किल प्राप्त किए और कोई भी इन कामों को नही कर सकता।
किन्तु भारतीय समाज के लोग इन कामों को करने में अपनी बेज्जती महसूस करते है और इन कामों को हीन भावों से देखते है और ऐसे कर्मकारों का सम्मान भी नही करते बल्कि हेय दृष्टि से देखते है। यही कारण है कि इन कामों में संलग्न लोग अपने व्यवसाय को केबल आमनदनी और मजबुरी का ही जरिया समझते है और इससे प्रेम नही करते यहाँ तक कि अपने बच्चों को इन व्यवसायों से दूर रहने के लिए प्रेरित करते रहते है ।
यह अच्छी बात है कि हर कोई अच्छा पढ़लिखकर बड़ी से बड़ी जिम्मेवारी उठाये किन्तु यह भी जरूरी है कि प्रत्येक काम को समान रूप से सम्मान दिया जाय और किसी भी काम को जाति धर्म से जोड़कर नही देखा जाना चाहिए क्योंकि जाति धर्म समाजिक पहचान है और काम अपनी योग्यता के अनुसार सामाजिक जिम्मेवारी को पूर्ण करने का तरीका ।
अगर इसप्रकार के सभी कामों करने बालों को सामान रूप से सम्मान दिया जाय और लोगो को प्रोत्साहित किया जाय तो इससे एक तरफ बेरोजगारी में कमी आएगी तो वहीँ सामाजिक समानता भी बढ़ेगी और एकदूसरे के प्रति सम्मान भी बढ़ेगा । अतः देश में स्वक्षता भी बढ़ेगी और जातिगत श्रेष्ठता के अहम में खाली बैठे बेरोजगार लोग भी इसमें अपनी सेवा देंगे इन सबके साथ ही गुंडागर्दी भी कम होगी और औद्योगिक विकास भी होगा और कम्पनिया इस क्षेत्र में तकनीकी को भी प्रोत्साहन देंगी।
इन सभी से रोजगार को बढ़ाबा मिलेगा और समाजिक साहिस्नुता एवं बराबरी को भी।