भगवान एक है ।
तू कौन है ?
कोई व्यक्ति या ज्योति ।
तू हिंदू है या मुस्लिम ,
सिख है या ईसाई ।
तू है केवल असीम तेजस्वी प्रकाश ।
तू कहां रहता है ?
तू मंदिर में रहता है या मस्जिद में,
तू गुरुद्वारे में रहता है या गिरिजाघर में।
तेरा निवास स्थान तो आत्मा है ।
अलग अलग रीतियों / नीतियों से ,
मनुष्य करे तेरी अराधना ।
कोई गीता / रामायण पढ़े ,कोई कुरान ,
कोई गुरुग्रंथ साहिब पढ़े कोई बाइबल ।
सब में समाहित है एक ही संदेश तेरा ।
एक ही ज्ञान मानवता ।
कोई भजन गाए तो कोई दे अजान ।
कोई गुरुवाणी गाए ,तो कोई यीशु प्रार्थना ।
मतलब तो तेरी उपासना से है ।
तुझे भगवान कहे या अल्लाह ,
तुझे वाहेगुरु कहे या गॉड ।
उद्देश्य तुझे प्यार से पुकारने से है।
अपने प्रेम पात्र को प्रेम में कई प्यारे नाम से
पुकारा जा सकता है ।ना !
यदि तू एक ही है ,
तेरा नाम भी है एक ,
तेरा धाम भी एक ।
तू सभी प्राणी मात्र के हृदय में रहता है ।
और मृत्यु के पश्चात सभी को तुझमें ही सामना है।
तो यह धर्म किसने बनाए हैं?
यदि सभी आत्माओं की मंजिल एक ही है ,
तो धर्म की दीवारें किसने खड़ी की है ?
और क्यों ?
यह धर्म के नाम पर झगड़े , दंगे फसाद ,खून खराबा।क्यों ? आखिर क्यों ?
काश ! हर व्यक्ति खुद को धर्म के दायरे से,
निकलकर केवल आत्मा / मन समझे ।
और मिलकर एक ही धर्म बनाए ‘मानवता’।
तो कितना अच्छा हो !
काश ! हर व्यक्ति यह मान ले की
तू एक है जो हम सब का पिता ।
और हम सब तेरी संताने है ।
बस ! इतना समझ ले ! सर्वथा प्रयाप्त है यह ।
इसके अलावा और कुछ नही !
कुछ नहीं!!