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1 Jan 2018 · 1 min read

बढ़ती अपनी उम्र भी , जैसे बदलें साल

बढ़ती अपनी उम्र भी , जैसे बदलें साल
और मनाते हम खुशी, कैसा माया जाल
कैसा माया जाल,बिछा रहता आंखों पर
रहता पहरा सख्त, हमारी ही साँसों पर
रोज सुनहरी भोर, साँझ में जैसे ढलती
करने अपना अंत , ज़िन्दगी आगे बढ़ती

डॉ अर्चना गुप्ता

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