” बड़ी तीखी है , धार कजरे की ” !!
कुंदन देह ,
निखरी निखरी !
आभूषण से ,
छवि है निखरी !
जगी उम्मीदें –
सिर चढ़ बोलें !
बड़ी तीखी है ,
मार नखरे की !!
चंचल नयना ,
कजरारे से !
हम तो सब कुछ,
हैं हारे से !
देहरी पर –
वक़्त हरकारा !
बहकी हुई ,
बयार गजरे सी !!
रूप दमकता ,
दर्पण देखे !
भाव तुम्हारे ,
रहते ऐंठे !
हाथ नहीं कुछ –
रहा निरखना !
चुरा गयी हो ,
तुम नज़रें भी !!