Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Jan 2018 · 6 min read

बहारन (भोजपुरी कहानी) (प्रतियोगिता के लिए)

बहारन (भोजपुरी कहानी) (प्रतियोगिता के लिए)
——————————————–
अपना बेटवा के हतास मुरझाइल, चेहरा देखि के केतना ब्याकुल रहले फुलेना तिवारी।
फुलेना तिवारी अनाम गाँव के एगो बहुते गरीब किसान हऊये , वइसे तऽ समुचा गांव उनके फुलेने काका कहला । उनकर तीन गो बेटा आ एगो बेटी…..सबके सब लइका अउरी प्रिया पढे में गाँव – जवार में अव्वल रहलन जहाँ तक ले लागल अपना समरथा के अनुसार फुलेना तिवारी सबके पढ़वलन- लिखवलन बाकिर केहूँ के भागि के बखरा केहूँ थोड़ही न होला ।

वइसे त गाँव में कई लोगन के आगे पढे़ बदे सरकारियो सहायता मिलि जाला बाकिर फुलेना तिवारी के लइकन के ई सुविधा ना मीलल कारन एगो तऽ बरहामन ऊपर से गरीब ना कवनों सोरस ना कवनो पैरवी। हार पाछि के बड़का लइकवा नोकरी के खातिर रोजे भाग-दउड़ करे लागल, पर इहवों त उहे हालात बा, धोबी के कुत्ता ना घर के ना घाट के।

नोकरी खातिर परीक्षा दीहलस एक जघे आरक्षण के कारन तनिके से रहिगइल ……..दुसरा जघे घुस ना दे पवले के कारन मामला लटक गइल। उहवें मोट घूस दे के घूरहू के मझिला लइकवा नोकरी पा गइल।अदना सिपाही बा, लेकिन एके साल में एगो टेकटर, एगो दू पहिया वाला फटफटिया कीन लिहलस…. एतने ना; चलेला त केतना रुआब से चलेला, लागेला जईसे कही के लाटसाहब हऽ। काहे ना भाई सरकारी नोकरी आ ओहियो में सिपाही रुआब त रहबे करी।

भीखम के छोटका के भी त नोकरिया होइये गइल । ओकर तऽ हाइटो खीचखाँचि के पांचे फूट होई, दऊर में भी कवनो खास ना रहे, लेकिन सबसे बड़का बात बाप के गेठरी में पईसा , बड़- बड़ साहेब सुबहा के बीच उठल बइठल, आ ओकरा पर सबसे बड़हन बात सोना पर सुहागा आरक्छन। …….ओकरो बेरा पार हो गइल, ऊ त रेल गाड़ी में जीआरपी की सीआरपी अइसने कुछो कहल जाला, ओह में सिपाही हो गइल।
सुने में त इहाँ तकले आवता रेलगड़िया में आवे जाये वालन के मोटरी – गेठरी चेक करेला अउरी भुलिया फुसला के खुबे पईसा खिचेला। चलीं बिलाई के भागे सिकहर टूटल ऐही के कहल जाला। नाहीं त भुटेलिया कवने लायक रहल ह।

आज पाँच महीना से रोजे फुलेना काका के बड़का लइकवा रजीव्आ ऐह आफीस सो आफीस , येह दुआर से ओह दुआर, दऊर लगावता लेकिन हर जघे निरासे हाथ लागता , सरकारी त सरकारी कवनों प्राईवेटो काम नइखे मिलत , रोज सबेरे तईयार होके जाला, लागेला जइसे आज नोकरी लेइये के आई बाकिर जब साँझ के घरे आवला त मुँहवा सुखल आ लटकल रहेला, जवना के देखि के फुलेना तिवारी के हियरा ब्याकुल होके खीरनी नू काटे लागेला।

आज हार पाछि के रजीव ई फैसला कइले ह कि अब ऊ सरकारी नोकरी के चक्कर में ना परी, अब दिल्ली चाहे पंजाब जाई ओहिजा कमाई, भले जवने काम मिली । फुलेना काका भीखम से पान सौ रोपेया पईंचा मांगि के लइलन हऽ , ईहे रोपेया लेके राजीव दिल्ली जायेके तईयार भइलन हऽ, जइसेहि राजीव घर से बाहर जाये बदे तईयार भइलें, फुलेना काका उनका आज के जमाना में रोज- बेरोज घटे वाला हर एक घटना से अवगत करावे लगलें, हर एक ऊच – नीच, सही – गलत, भला – बुरा से कइसे बचल जाय बतावे लगलन।

वइसे त राजीव फुलेना काका के अपेक्षा अधिक पढले बाड़े, तेज – तर्रार भी खुबे बाड़े बाकिर बाप त बापे होला, ऊ अमीर होय भा गरीब, कवनो भी जाती , सम्प्रदाय या समाज से होखे बेटा – बेटी के भविष्य, सुघर, सुनर जीवन यापन, स्वास्थ्य, भला – बुरा के विषय में हमेशा सजग रहला । आज के जनरेसन ऐह बात के बुरा भी माने लागल बा, ई कहिके कि काहे दिमाग के दही करतानी, हम अब लइका नइखीं, हम आपन भला बुरा खुदहि सोच आ कर सकिला। ऊ अब आपन सत्ता सिद्धि कइल चाहला, परन्तु फिर भी बाप के मन सत्ता सिद्धि के लालसा से ना अपितु अपना बेटा बेटी के सुघर भविष्य, स्वस्थ जीवन के मंगल कामना बदे बेचैन रहला।

खैर आज के जनरेसन भा पहिले के जनरेसन ई सत्ता सिद्धि वाला लालसा येहि उमर के एगो दुर्गम विन्दु हऽ, कुछ लोगन में ई आइये जाला । वईसे पहिले ई किटाड़ु कुछ कम रहे, आजकल जरूरत से जादा बा। कारण आज के समाजिक परिवेश पहिले के अपेक्षा कुछ जादा खुला खुला सा हो गइल बा। छोड़ी सबे हमहुँ नाजाने कवने बात में लाग गईनी।

ह तऽ फुलेना काका नीमन तरे से सबकुछ समझा के तब कहीं राजीव के दिल्ली जाये दिहले।

दिल्ली में पहिले से हीं मंगल काका के सझिला लइका किशनवा रहला, ई ओकरे पता लेके उहवाँ पहुँचल, दु – चार दिन के भाग – दउर के बाद राजीव के एगो कम्पनी में नोकरी मिल गइल। एक महीना उनकर खर्चा किशन उठवले पईसा मिलते ही किशन ऊ पईसा ईहवाँ के खर्च खोराकी छांट के फुलेना काका के नामे भेज दिहले , ई शिलशिला ऐइस ही चले लागल।

हौले – हौले राजीव अपने दुसरका भाई नवीन के भी दिल्लिये बोला लिहले । दूनो भाई पान- छः साल खुब मेहनत से कमाके बहीन के बीआहे के तईयारी करे लगलन। एक दिन राजीव प्रितीया बदे केहूँ के बतावल जगह पर लइका देखे गईलन , लइका देखे में त ठीके ठाक रहे बाकीर रहे पक्का टीनहिया हीरो , जीन्स के पाईंट , हीरो छापदार वाला टी सरट आँखी में लगावे वाला चश्मा मुड़ी में खोसले रहे…।

ई लइका राजीव के फुटलियों आँखी ना सोहाइल, बिना कवनों बात- बिचार कइले ऊ वापस आ गइलें, आके सब बात अपना बाबूजी से उहे फुलेने काका से बतवल़ें।
बाबूजी…. ऊ लइका कवनो भी ऐंगल से प्रितियि के लायक नइखे , हमरा ऊ रिश्ता तनिको नइखे सोहात, बाकी रउरा जइसन कहीं ऊहे होई। फुलेना काका अपना बेटा के बात से
बड़ा हर्षित भइलें ऊहो त ई बतिया जानते रहलें कि हर एक भाई अपने बहीन के अच्छा से अच्छा घर बर देखि के हीं बियाहल चाहला। जब बरे नीक ना त बिआह कइसन ।

अब जहाँ – जहाँ लोग बतावे उहवे बाप बेटा बरतूहारी करे जाय लोग , घर सुघर मिले त बर ना आ बर सुघर मिले त घर ना , आ जहवाँ ई दूनों सुभईत मिले ऊहवाँ दहेज ऐतना मंगाय की सुनते बाप बेटा के झीनझीनी ऊपट जाय। खैर कइसो हीत पाहूँन के जोर जबरी एगो रिश्ता तय भगइल, वइसे तऽ ईहों रिश्ता राजीव के मन लायक नाहिये रहे पर करें त का करें , जइसन जाथा वइसने नु कथा होई ।

जथा अनुसार बड़ा धुमधाम से प्रितिया बिआहल गइल , सगरे रिश्तेदार नेवतल गइलें सबकर खुब खातिरदारी भइल, बिआह के दूसरे रोज प्रिती के बिदाई हो गईल । राजीव एक जाल से मुक्ति पा गईलन ।

देखि सबे कुरीति के दुष्परिणाम एगो बेटी, एगो बहीन जवन बाप भाई के हृदय के टुकड़ा होले ई नामुराद दहेज के कारण समाज ओहके बोझ के संज्ञा देवेला, आखिर ई कहा ले जायज बा, आज येही दहेज के कारण लोग भ्रूण के जाँच कराके बेटियन के कोखे में मरवा देता , जवन बेटी लक्ष्मी के रूप होले ओकरा जनमते जइसे सगरे घर में मातम पसर जाला , आखिर ई काहा तकले जाईज बा,जबकी हमरा देखे से माई बाप के सबसे जादा फिकीर बेटवन से जादा…. बेटियन के ही रहला।

समय बीतत गइल, राजीव आ नवीन अपना कमाई के बलबूते अपना छोटका भाई प्रवीन के डाकटरी पढ़ा दिहलें एही बीचे एगो नीमन लईकी देख राजीव नवीनों के बिआह कई दिहलें , बिआह होखते नवीन के मेहरारू नवीन के बड़ भाई से अलगा करा दिहलस ई कहके कि कबले सबकर भूथरा भरत रहब, काल्ह जब आपन बाल बच्चा होइहें तऽ, उनका के का देब घंटा? प्रवीनों के ई बात नीके लागल ऊ राजीव से कहलन राजीव कवनो आपत्ति ना कईलन सबका सहमति से नवीन अलग रहे लगलन।

ऐनें प्रविन डाक्टर बन गइलें, उनकरो शादी- बिआह हो गइल कुछ दिन तऽ सब कुछ नीके बीतल । कुछ दिन बीतले फुलेना काका के स्वर्गवास हो गइल अबहीन उनका काम किरीया के पाचे दस दिन बीतल रहे प्रवीन के मेहरारू साफ – साफ सबद में कहि दिहली की अगर भाईजी के तू अपना सङ्गे रखबऽ त हम तोहरा सङ्गे ना रहब। प्रविनों त मजबुरे रहलन कारन ठूंठ पेड़ ना फले लायक ना छाया लायक ।

प्रविन राजीव से कह दिहलन, तू अब आपन खुदे चेतऽ, अब हम आपने परिवार के सम्हाले में परेशान बानी येहमें तोहरो बोझ कईसे ढोईं, ना होखे त तू नवीन भईया के सङ्गे रह जा उनकर मेहरारू घरहीं नु रहेली, बनावल खिआवल ऊ कई लीहें, बाकिर हमार मेहरारू तऽ नोकरी करेले ऊ फ्री त बिया ना जवन तोहके बनाई खियाई।

राजीव कुछ बोल त ना सकलें बस जीवन के परत दर परत उठत ई नेह के परदा से खुद के ठगल महसुस करत रहलन। सोचत रहलन का ऐकरे नाम जिम्मेदारी हऽ। ऐही के फर्ज कहल जाला आखिर ऐह फर्ज के परिभाषा ह का…? जब ले जरूरत रहल तब ले घर के अहम सदस्य, बाकिर जरूरत पूरन होत हि बहारन जइसे घर के बहरा फेंक दिहल जाला । सोच उनकर गहन होत चल गइल किन्तु उनका कवनो उत्तर ना मिलल….।

अगर रऊरा सब बता सकिने तऽ जरूरे बताईब.. जिम्मेदारी फर्ज के सही परिभाषा का होला ….।? नमस्कार

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार
फोन : 9560335952

1 Like · 679 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
मां तो फरिश्ता है।
मां तो फरिश्ता है।
Taj Mohammad
कविता: एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
कविता: एक राखी मुझे भेज दो, रक्षाबंधन आने वाला है।
Rajesh Kumar Arjun
इन्द्रिय जनित ज्ञान सब नश्वर, माया जनित सदा छलता है ।
इन्द्रिय जनित ज्ञान सब नश्वर, माया जनित सदा छलता है ।
लक्ष्मी सिंह
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आ
अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आ
पूर्वार्थ
मेरे प्रेम पत्र 3
मेरे प्रेम पत्र 3
विजय कुमार नामदेव
तेरे ख़त
तेरे ख़त
Surinder blackpen
हम जो कहेंगे-सच कहेंगे
हम जो कहेंगे-सच कहेंगे
Shekhar Chandra Mitra
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
कवि दीपक बवेजा
माँ की चाह
माँ की चाह
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
पत्थर - पत्थर सींचते ,
पत्थर - पत्थर सींचते ,
Mahendra Narayan
3172.*पूर्णिका*
3172.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
एक ही भूल
एक ही भूल
Mukesh Kumar Sonkar
आभा पंखी से बढ़ी ,
आभा पंखी से बढ़ी ,
Rashmi Sanjay
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
*स्वतंत्रता आंदोलन में रामपुर निवासियों की भूमिका*
Ravi Prakash
हम तुम्हें सोचते हैं
हम तुम्हें सोचते हैं
Dr fauzia Naseem shad
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
विजय कुमार अग्रवाल
दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद।
दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद।
Neelam Sharma
In adverse circumstances, neither the behavior nor the festi
In adverse circumstances, neither the behavior nor the festi
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरा बचपन
मेरा बचपन
Ankita Patel
The story of the two boy
The story of the two boy
DARK EVIL
हंसकर मुझे तू कर विदा
हंसकर मुझे तू कर विदा
gurudeenverma198
*तेरे साथ जीवन*
*तेरे साथ जीवन*
AVINASH (Avi...) MEHRA
सबसे मुश्किल होता है, मृदुभाषी मगर दुष्ट–स्वार्थी लोगों से न
सबसे मुश्किल होता है, मृदुभाषी मगर दुष्ट–स्वार्थी लोगों से न
Dr MusafiR BaithA
'अ' अनार से
'अ' अनार से
Dr. Kishan tandon kranti
देशभक्ति का राग सुनो
देशभक्ति का राग सुनो
Sandeep Pande
*हिंदी मेरे देश की जुबान है*
*हिंदी मेरे देश की जुबान है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जो जिस चीज़ को तरसा है,
जो जिस चीज़ को तरसा है,
Pramila sultan
Exhibition
Exhibition
Bikram Kumar
प्रेम
प्रेम
Shyam Sundar Subramanian
#पैरोडी-
#पैरोडी-
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...