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7 Nov 2017 · 1 min read

ब्रह्म स्तय जगत मिथ्या

माया शक्ति है ब्रह्म की
पर उसको न चु पाये
उसकी इच्छा आज्ञा से
पल में यह संसार बनाये।
जो है लेकिन मिट जाता है
सत्य नही कहलाता है
पल चीन यह शरीर मिटता है
आत्मा शेष रह जाता है।
दृश्य जगत है वह द्रष्टा है
द्रष्टा दृश्य नही हो सकता
आत्म रूप से सब भूतों में
वही स्तय बन कर रहता।
क्षण क्षण पर जो बदले हरदम
समझो वह नश्वर होता है
सदा सर्वदा रहे एक रस
वही स्तय ब्रह्म होता है।
माया का स्पर्श नहीं है
वही अखंड,अव्यय,अनंत है
नाम रूप माया सब मिथ्या
सत्य बस केवल एक ब्रह्म है।

Language: Hindi
597 Views
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