बोल अंधेरों पे आ गुनगुनाने लगे
छंद-वाचिक स्रग्विणी
२१२ २१२ २१२ २१२
बोल अधरों पे’ आ गुनगुनाने लगे।
प्यार की बोलियां ही सुनाने लगे।।
खुल गईं खिड़कियां आज सब प्यार की,
शब्द दिल की दशा ही बताने लगे।
पींग भरने लगे स्वप्न सौपान पर,
पांव हम भी हवा में चलाने लगे।
भाव जो थे छुपे एक वीरान में,
आज खुलकर वही अब सताने लगे।
मिल गई आज मंजिल अटल को सहज,
प्यार के गीत ही अब सुहाने लगे।