बोलूँ क्या ?
तुम बोलो, कुछ बोलूँ क्या ?
राज हृदय का खोलूं क्या ?
मन तुझको रब मान चुका है,
मैं भी तेरा हो – लूँ क्या ?
है, संदेह अगर तो कह दो,
प्रीत तुला में तोलूँ क्या ?
वर्षों बाद मिला है मौका,
लिपट-लिपट कर रो-लूँ क्या ?
स्वयं , सरोवर मीठा हो तुम,
मैं नीरस, रस घोलूँ क्या ?
जो जीवन तुझपर हारा हूँ,
उस जीवन से मोलूँ क्या ?