बोलो भगवन क्या जाता?
बोलो भगवन क्या जाता?
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गर मैं भी विद्यालय जाता , बोलो तेरा क्या जाता
मैं भी थोड़ा सुख जो पाता बोलो तेरा क्या जाता।
मैं भी तो एक नन्हा अंकुर
आखिर मेरा दोष ही क्या
किस कारण प्रभु तुमने हमको
आखिर ऐसा भाग्य दिया।
इन बच्चों के संग जो रहता बोलो तेरा क्या जाता
मै भी थोड़ा सुख जो पाता बोलो तेरा क्या जाता।
लिखने वाले तुमने लिखा
आखिर ऐसा भाग्य ही क्यों
मुझसे जो तुमनें है ठाना
बोलो ऐसा रार हीं क्यों?
मैं भी पढता तो कुछ बनता बोलो तेरा क्या जाता
मैं भी थोड़ा सूख जो पाता बोलो तेरा क्या जाता?
आज ललायित मेरी आँखें
अपने भाग्य को कोस रहीं
मेरे साथ जो घटित हो रहा
इसका मुझको होश नहीं
सजा के बदले शिक्षा देते बोलो तेरा क्या जाता
मैं भी थोड़ा सुख जो पाता बोलो तेरा क्या जाता?
बहना मेरी पूछ रही
भैया कैसा न्याय है ये
ये बच्चे सब अन्दर क्यों
हम बाहर क्यों खड़े हुये
जिज्ञासा इस नन्हीं जाकी पूरित होती क्या जाता
मैं थोड़ा जो सुख पाता बोलो तेरा क्या जाता।
मुझ पे अब जो बीत रही
प्रभु नहीं अब माख करो
मेरे जैसा भाग्य किसीका
लिखना ना प्रण आप करो।
भाग्य मेरे कुछ फूल खिलाते बोलो तेरा क्या जाता,
मैं थोड़ा जो सुख पा जाता बोलो तेरा क्या जाता?
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✍✍ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार….८४५४५५