*बेसुध सियासत*
सोफा गद्दीदार गद्दारों को
नींद बहुत आती है,
घर में बिलख रही माँ,
सियासत खिलखिलाती है।
उजड़ रही है मांग किसी की
गोद उजड़ रही,
उजड़ा बहन का प्यार
वो हृदय धधकाती है।
सोफा गद्दीदार गद्दारों को नींद …….
छिना मुँह का दूध,
बिटिया बिलबिलाती है।
सियासत-तमाशबीनी
पिता की छाती धधकाती है।
सोफा गद्दीदार गद्दारों को…….।
आघात लगा माँ-ममता को,
पत्नी-श्रंगार उजड़ गया।
सियासी कुर्सी के कानों तक
आवाज़ नहीं जाती है।
सोफा गद्दीदार गद्दारों को………।
सीमा पर तैनात प्रहरी,
जीवन अर्पण कर देते हैं।
कुटुंब-कबीले छोड़ स्वयं को
यूँ अर्पित कर देते हैं।
जिनकी उदारता के बलबूते,
‘मयंक’ बौंछें खिल पाती हैं।
सोफा गद्दीदार गद्दारों को……..।