??>अभिलाषा
जिसे चाहा वो न मिला,रह गई अभिलाषा।
प्यार में सब कुछ मिले,ये नहीं परिभाषा।।
राधा ने शाम को चाहा,जान से भी ज़्यादा।
शाम मिला भी न मिला,नाम जुड़ा सदा-सा।।
प्यार का अर्थ त्याग है,दिलों का विश्वास है।
इसमें जो ख़ुशी मिलती,वैसी कोई न दिलाशा।।
ऐसे भी लोग हैं ख़्वाबों,यादों में जी लेते हैं।
मायूस हो ज़िंदगी को,न बनाओ रे तमाशा।।
जिसको जो मिले वो तो,तक़दीर का खेल है।
हाथों की इन लकीरों का,पलटता नहीं पाशा।।
कल चाहते थे जितना,आज भी चाहते उतना।
चाहे आँखों में झाँक देखो,प्यार ले ज़रा-सा।।
प्रीतम समझे प्यार को,क़समें-वादे इक़रार को।
मज़बूर हालात से पर,नाम न देना बेवफ़ा-सा।।
……राधेयश्याम बंगालिया प्रीतम…….
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