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5 Dec 2016 · 1 min read

बेवफा

इश्क के दरिया मे/डुबोया हूँ खुद को खुद ही,

तन्हाई मे भी रो सकूँ/मिले ऐसे हालात नही!

थी वफा जब तक/खुद को जुगनू ही समझा किए

अना की जंग मे/मयस्सर अब रात नही!

खुदा बख्श उस/नासमझ की नादानी को,

जीने का सबब छीन लिया/और कहती ‘कोई बात नही’!

ज़फा की थी गर हमने तो सिर्फ बेवफा कह देते,

मर जाते खुद/आते तेरे सर /कत्ल-ए-इल्जामात नहीं।

तब इबादत थी मोहब्बत/अब कबूल तन्हाई भी है,

क्योंकि/कांटे किया करते फूलों से/कोई सवालात नहीं!

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