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28 May 2020 · 3 min read

बेबसी ही हर मुसीबत की जड़ है!!भाग एक।

भाग एक!!

विडंबना तो देखिए,
रेलें गंतव्य से भटक गई,
तो उसे, एक योजना का रंग दे डाला,
रेलें विलम्बित हुई तो
इसका भी कारण कह डाला,
लोगों को खाना नसीब ना हुआ,
तो भी तर्क सामने आया,
पीने को पानी नहीं मिला,
तो,लूट लिया गया है,
यह बतलाया गया ।

और अब जब एक महिला मर गई,
तो तब भी तुरंत स्पष्टीकरण,
आ गया,
पहले से ही बीमार थी,
बेचारी,
उसे इलाज नहीं मिला,
यात्रा का टिकट मिल गया,
और साथ में,
जो बच्चा उसे जगाने का अनथक प्रयास कर रहा था,
वह भी उसका नहीं है,
समझाया गया,
वह तो चीर निंद्रा में सो गई,
तो सच सामने कैसे आयेगा,
जो उसका संगी साथी है वह ही बताएगा,
और उससे कहलवा दिया गया होगा,
अपनी सुविधानुसार,
ताकि, रेलवे पर ना पड़े,
इसका भार,
और इस प्रकार रेलवे ने,
अपनी जिम्मेदारी का पुरा निर्वाह किया,
मरने वाली के नसीब में,
यही था लिखा।

बेघर , बेखबर वह मर गई,
उस बच्चे को वह,
अकेले इस जहां में छोड़ गयी,
जो उसके साथ अठखेलियां कर रहा था,
पता नहीं वह उसका अपना ही जना था,
या, फिर उसे उससे लगाव था,
जिसे छोड़ कर वह चल बसी,
हाय कैसी है ये बेबसी,
जिसने उसे अपने से दूर कर दिया,
यों जमाने में तनहा रहने को मजबूर कर दिया।

उसके भाग्य में यह सुख बस यहीं तक था,
वह नहीं इतना है भाग्य शाली,
जो कोई बहाना बना सके,
अपनी व्यथा को समझा सके,
कि उसका क्या रिश्ता है,
उस अभागी से,
जिसे एक झटके में,
वह नकार गए हैं,
और उसको उसके बजुद से हटा गए हैं,
उन्होंने तो अपनी खाल बचा ली,
इसको तो अभी अपनी पहचान का भी पता नहीं,
वह कब यह जान पाएगा,
उसके साथ क्या घटित हुआ,
या फिर भूल जाएगा,
जीवन के संघर्षों में,
कोई था, उसका भी,
जिसके साथ में वह खेला करता था,
और उसका एक नजारा,
उसने अनजाने में,
रेलवे के एक स्टेशन में,
अपनी निर्मलता के साथ,
प्रस्तुत करके भी दिखा दिया।।

बेबसी ही मजबूरी की जड़ है!!भाग दो।
***************!**********”***”**
यह क्या कम विडंबना है,
जब जेब में रुपया पैसा है,
और खरीदने को,
वह वस्तु नहीं,
जो उनकी तब की जरूरत है,

क्या गजब का इंतजाम है,
रेलों में,
वक्त पर खाना नहीं,
पीने को पानी नहीं,
बच्चों को दूध नहीं,
और गंतव्य तक पहुंचने का,
समय भी निर्धारित नहीं।

यह तात्कालिक व्यवस्था है,
इसमें आने-जाने की सुविधा है,
इसके मार्ग का निर्धारण नहीं है,
इसे कितने समय में पंहुचना है,
यह भी तय नहीं ,
जो राह मिल जाए उस पर चल देते हैं,
हम कहीं के लिए भी चल देते हैं,
हमें जाना होता है गोरखपुर को,
तो हम राउरकेला में जा पहुंचते हैं।
हमें समय बिताना है,
हमें उसका कारण बताना भी आता है,

इस लिए यदि कोई हमको दोष देंदे,
तो हम घबराते नहीं,
उसका जायज कारण सामने लाते हैं,
अब यह भी कहा जा रहा है,
एक बच्चे ने दूध के अभाव में,
जान गंवा दी,
क्योंकि उसकी माता के स्तनो में,
दूध बचा नहीं,
और रेल में यह मिला नहीं,
मां अभागी रो रोकर बेढाल हुई,
पिता भी घूम-घूम कर बेहाल हुआ,
पर समस्या का ना समाधान हुआ।

और आखिर में वह हुआ,
जिसका डर था,
उस दूधमुंहे के प्राण ना बच सके,
अब उसके पिता के आहत होने की बारी थी,
असहाय पिता अपने पैरों पर भी नहीं खड़ा रह सका,
और फर्स पर जा गिरा,
लोग सहारा दे रहे थे,
उसका ढांढस बढ़ा रहे थे,
पर बेबस पिता अपनी बेबसी पर,
जार-जार हो रहा था,
और उस मासूम को,
जो अब नहीं रहा है,
उसको गोद में बैठ कर रो रहा था,
यह बेबसी ने ना जाने कितनों को मार गई है,
यही बेबसी मजबूरी की जड़ हो रही है,
और इस मजबूरी की जड़ का कोई इलाज नहीं,
बहाना है, अगर चाहो तो समझलो,
नहीं तो कोई बात नहीं।।

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 184 Views
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