बेपरवाह सा यूं न चल, यूं ही तू न अकड़
१.
बेपरवाह सा यूं न चल, यूं ही तू न अकड़
जिन्दगी की शाम कब हो जाए, जरा संभल के चल
२.
सुबह की मदमस्त हवा, तन को सुकून देती है
उस खुदा की इबादत, रूह को सुकून देती है
१.
बेपरवाह सा यूं न चल, यूं ही तू न अकड़
जिन्दगी की शाम कब हो जाए, जरा संभल के चल
२.
सुबह की मदमस्त हवा, तन को सुकून देती है
उस खुदा की इबादत, रूह को सुकून देती है