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28 Feb 2021 · 1 min read

बेतुकी भीड़ से।

मैं बद से बद्तर होता चला गया
कभी कभी सोचा न था भलाई के बदले बुरा होगा। लेकिन मैं बुराई के बदले को टालता चला गया।अब चमकेगी किस्मत मेरी। मैं रोशनी के इंतजार में ठगा चला गया।। चमकने बालों की किस्मत से भी रगड़ के देखा मैंने। फिर भी किस्मत बालों से जुदा होता चला गया।
।चमकते हुए देखा बहुत सितारों को वो ।भीएक दिन बुझता हुआ चला गया।। मैं भीड़ का हिस्सा नही बन सका। इसलिए बेतुकी भीड़ से अकेला होता चला गया।।

Language: Hindi
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