बेटी हूँ
दो-चार किताबें मेरे हिस्से भी रख दो
दो-चार पहाड़े मेरे जेहन में भी भर दो
बेटी हूँ कुछ ख्वाब के सलमा -सितारे
मेरे हाथों की लकीरों में भी जर दो।
दो-चार किताबों के संग-संग ही
मुझ को मेरा होने का हक, हक से देदो।
दो वंशों की नीब सवारने हैं मुझको
मेरे हिस्से भी लिखना पढ़ना रख दो !
…सिद्धार्थ