बेजुबानों की गुजारिश
हम पर न डालो ये चटकीले रंग ,
ज़हरीले होते हैं हमारे लिए रंग ।
तुम क्या जानो हमारी तकलीफ ,
दाद ,खाज खुजली से होते हैं तंग ।
इसकी गंध से सरदर्द होता है हमें,
और बुखार भी आता है इसके संग ।
यह होली तुम्हे तो देती होगी खुशी ,
मगर हमें नहीं भाती ये होली ,न रंग ।
तुम तो जी चाहे उतार सकते हो इन्हें ,
मगर हम कैसे उतारें खुद पे लगा रंग ।
तुम खेलो होली खुशी से तुम्हें हक है ,
और हमारा हक है हमसे दूर रखो रंग ।
हम बेजुबानों की गुजारिश है तुमसे ,
अपनी तरह जीने दो हमें अपने ही ढंग ।
आजादी से जीने का हक है हमें भी ,
हां ! गर डालना ही है तो डालो प्रेम रंग ।