बुंदेली (दमदार दुमदार ) दोहे
बुंदेली (दमदार दुमदार ) दोहे
माते कक्का घास में , सुलगा गय है आग |
मड़ी कथूले की मुड़ी , ठोको ठाड़ों दाग ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
बिन्नू सपरन खौ गई , लहरें उठती घाट |
राम प्यारी समझ रही ,बिन्नु कौ गर्राट ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
लचक कमरियां देखकर , टपकी बब्बा लार |
आँख दबाकर दे रहे , लरकन खौ उसकार ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
गलती माते जू करें , सबरे साधें मौन |
उरजट्टे खौं सोचते सामें आवै कौन |
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
दारु बँट रई गाँव में , डलने हैं कल वोट |
सबई चिमाने लग रहे ,डाल खलेती नोट ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
लरका माते को लगे , सब लरकन से भिन्न |
फिर भी पूजो जात है , रात दिना रत टुन्न ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
करें टिटकरी गाँव के ,फटियाँ की लख नार |
कहें भुजाई डोकर भी , खूब जताए प्यार ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
कोरोना के काल में , भूखा मरो किसान |
पर डबला से फूल गय , देखो सभी प्रधान ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
उससे ना कुछ बोलते , जिससे भाँवर सात |
मोदी रेडियो टुनटुना ,करते मन की बात ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
बापू आशाराम का , राधे माँ खौ ज्ञान |
इक दूजे का चित्त से , करना अंतरध्यान ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
माते कुत्ता मारने , घर ले आए लठ्ठ |
मातिन ने अजमा लिया, माते पर ही झट्ठ ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
राम राम जू चल उठे , भुनसारे से शाम |
समझो पास चुनाव हैं , बँटने दारू दाम ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
मोड़ी मुखिया की भगी, कौसे कलुआ बैन |
खबर पैल से ना दई , ईसै हौ गइ ठैन ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
जुड़कर पुंगा गाँव के , बात रहे है फांक |
जो जितनी ही फाँक ले,उतनी उसकी धांक ||
रामजी मौ में तारो |
भारत देश हमारो ||
परी लुक लुकी भरतु खौ , पूँछन गऔ है बात |
कौन मताइ थी टपरा , कक्का आघी रात ||
सांसी अबई बता दो |
झूठी इतई लुका दो ||
सबरे नेता बन गए , तक लो आज किसान |
गुड की परिया फूलती, डूठा पर दे ब्यान ||
शरम न इनखौ आती |
लज्जा खुदई लजाती ||
माते अब हर बात में , फंसा देत है टाँग |
जौन कुआँ साजो दिखे , डाल देत है भाँग ||
मजा सबका है लेते |
नहीं गांठ से कुछ देते ||
करी तरक्की देश ने ,बैसई करत ववाल |
मिले गर्भ से गमन तक ,जरिया ठौक दलाल ||
सुन लो सबरे लल्ला |
अब न करियो हल्ला ||
सेंगो गुटका डार के ,थूकन गए जब पीक |
लगो करकरो औंठ में , बसा उठी जब लीद ||
रामधई कब मानोगे |
छौड़ना कब ठानोगें ||
लबरन से बचकर चले , हमने समझों रोग |
लबरा डीगें फाँक रय , हमसे डरते लोग ||
रामधई ये न मानेगें |
पनैया पहचानेगें ||
देख गुली के पेड़ पर , पके टगें है आम |
ललचाकर माते चढे, नीचें गिरें धड़ाम ||
नौनी बजी ढुलकिया |
पौर में बिछ गई खटिया ||
बैरा आंखे बांधता , अंदरा बांधत कान |
लूले कुररू दे रहे , लाने को सामान ||
दनादन बाजे बजते |
नहीं अब हम कुछ कहते ||
बूँद गिरे या ना गिरे , करते रहिए शोर |
सावन भादौ लग गयों , नाच रहे है मोर ||
झूंठ को बांध पुलिन्दा |
करते रहिए धंधा ||
लाखों देकर फैसला , अफसर बड़ा महान |
फाइल खोजी सौ लिए , बाबू बेईमान ||
देश में यही कहानी |
कथा है बड़ी पुरानी ||
एक फीट गड्डा खुदा , शौचालय निर्माण |
जाँच कमेटी कह गई, दस है सत्य प्रमाण ||
काम सब सरकारी |
ऐसई बनतई तरकारी ||
सरकारी कर्जा मिला ,खर्च किए कछु दाम |
वोट दिया माफी मिली , बड़ा सुलभ है काम ||
बगिया लौचें माली |
बजाओं सबरे ताली ||
जौन तला बिन्नु करे , लोर लोर गर्राट |
माते को लरका उते, सबखौ रोके घाट ||
अजब यहाँ की रंगत | (अहा)
खावें मिलने पंगत ||
बिन्नु लोरे जिस तला , और करें खरयाट |
लरका माते को खड़ो ,भुन्सारे से घाट ||
राम मिलाई जोड़ी |
लगी ठिकाने मोड़ी ||
लगा मुसीका बिन्नु ने , पूरो करौ बजार |
इते सुभाष अब सोचते , कीखौं दयो उधार ||
पूरी शकल ना चीनीं |
कीखौं सौदा दीनी ||
भुन्सारे से बिन्नु ने , दयो दोदरा यार |
पंचर कर दई माते की , खड़ी द्वार पर कार ||
मौ में बांध मुसीका |
बिन्नु बनी खलीफा ||
सुभाष सिंघईसिंघई
एम•ए•,हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़)म०प्र०.