बीते दिनों की कहानी…
नहीं मिलेगा आपको गॉंव में सत्कार,
पहले की सदियों जैसा।,…..गुम हो गए वो दिन मेरे….
न करता कोई अब फ़िक्र कहाँ,
रहा न वो भाईचारा पहले जैसा।।
रोता है अब बचपन आपस में,
रहा न प्यार यहाँ पहले जैसा।
एक छोटा सा झगड़ा,
करता है बन्द बोलचाल यहाँ ।।…गुम हो गए वो दिन मेरे…
न जाने किस उल्फ़त में ।
भूखे ही वो दिन कट जाते,
आते ही घर पर फिर ,
चार चमाटे गाल पे खाते ।।
फ़िर रहते थे हम फ़ूले जैसे,
सारे घर का ख़र्चा हम ही चलाते।..गुम हो गए वो दिन मेरे…
बात-बात पर यूँ इठलाना,
ख़त्म ये दोस्ती तेरी-मेरी,
वो मित्रों से कट्टी करना,
फिर चंद क्षणों में वापस मिल जाना ।
कभी मित्र की कलम चुराना,
फिर वही मित्र को गिफ़्ट में देना।। …गुम हो गए वो दिन मेरे..
आज न में यूँ रूठ पाता हूँ,
न ही कोई अब मुझे मनाता।
रहता हूँ मैं इतना व्यस्त,
मित्र दूर की बात रहे,
ख़ुद बेटे से न में मिल पाता ।
क्या मैं रहता हूँ उलझा सा,
या वक़्त नहीं है मेरे पास।..गुम हो गए वो दिन मेरे…
क़भी भूल न पाउँगा मैं उन दिनों को,
जब मैं करता था हठखेलियाँ ।
कोशता हूँ अब मैं ख़ुद को,
क्यूँ बड़ा में हो गया अब,
दिन तो अच्छे वो ही थे ।।…गुम हो गए वो दिन मेरे…
आर एस बौद्ध “आघात”
9457901511