बिन तलातुम के जीवन तो बेकार है
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ग़ज़ल
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बात दिल से हमें आज स्वीकार है
काव्य परिवार है काव्य संसार है
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काव्य से ही जुड़े दिल के सभी तार हैं
पूरी सृष्टि में ही——- इसका संचार है
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काव्य का ये —सफर है तरन्नुम भरा
बिन तलातुम के जीवन तो बेकार है
??
अब गुजरते हैं दिन में तेरी याद में
जिंदगी लग रही अब तो दुश्वार है
??
मिल गया वो सितमगर सरे राह जब
फिर शुरू हो गया वो ही तकरार है
??
अब बता किस तरह भुला दूं तुझे
जिंदगी का मेरे तू ही आधार है
??
आपसे और “प्रीतम” न कुछ चाहिए
आपकी बस दुआ का तलबगार है
??
प्रीतम राठौर
श्रावस्ती (उ०प्र०)