बिना कुछ कहे
बिना कुछ कहे सब अता हो गया
हंसी सामने चेहरा हो गया
दबे पाँव चल के,गया था कहीं
शिकारी वही, लापता हो गया
मुझे दख, ‘फिर’ गई निगाह उनकी
गुनाह कब ख़ास, इतना हो गया
नही बच सका, आदमी लालची
भरे पाप का जो, घडा हो गया
छुपा सीने में राज रखता कई
सयाना वो मुखबिर, बच्चा हो गया
दबंग बन लूटा,सब्र की अस्मत
इजाफा गुरुर, कितना हो गया
कहीं मातमी धुन सुना तो लगा
अचानक शहर में दंगा हो गया
सुशील यादव
दुर्ग