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9 Jul 2021 · 10 min read

बिखरी यादें ……4

[5/9, 8:41 AM] Naresh Sagar: आओ जिंदगी से बात करते हैं।
आज अपनों से बात करते हैं ।‌।
वक्त नाजुक हैं अना को छोड़ो।
हंसकर हंसी की बात करते हैं ।।
======बेख़ौफ़ शायर
10/05/21
[5/9, 9:05 AM] Naresh Sagar: मां पास है तो, जन्नत भी पास रहती है।
हर खुशी हर हाल में,आस- पास रहती है।।
मुकद्दर वाले होते हैं, वो ए- “सागर”।
जिनकी नजरों में , मां खास रहती है ।।
=====बेख़ौफ़ शायर
10/05/21
[5/9, 3:30 PM] Naresh Sagar: गीत
हमको देश आज़ाद चाहिए
=========
मंदिर नहीं स्कूल चाहिए।
हमको देश खुशहाल चाहिए।।
मन की बातें लगे छलावा।
हमको पन्द्रह लाख चाहिए।।
दे सको तो बस ये दे दो।
हमको तुमसे तलाक़ चाहिए।।
घुटन बहुत है राज़ में तेरे ।
हमको सांस आजाद चाहिए।।
मां भारत भी अब रोती है ।
हमको मां खुशहाल चाहिए।।
अपने जुमले पास रखो तुम।
हमको राजा और चाहिए ।।
आंख नहीं दिल भी रोता है।
अब ना ये सरकार चाहिए।।
जो चाहा सब बेचा तुमने ।
हमको देश आज़ाद चाहिए।।
माना सच पर अब है ख़तरा।
“सागर” अब इंकलाब चाहिए ।।
=======
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित
09/05/2021
[5/9, 4:37 PM] Naresh Sagar: दिनांक….09/05/2021
विधा ……..गीत
विषय … धरती की वेदना
======
जिसने जीवन को महकाया।
जिसने मीठा आम खिलाया।।

जिसने मिठा जल दे हमको।
सांसों का श्रृंगार कराया ।।

जिसकी अग्नि पाकर के।
हमने पका भोजन को खाया।।

जिसकी नाचती डालीं से।
आक्सीजन को हमने पाया।।

आज उसी धरती की छाती पर।
हमने कितना भार बढ़ाया।।

अपने मतलब के कारण ही।
कितने पेड़ों को काट गिराया।।

कल कल बहती नदियों के।
पानी को ज़हरीला बनाया।।

फसल नाम पर ज़हर उगाते।
जंगल जंगल को कटवाया।।

धरती सबका भार उठाती।
तूने धरती को ही रूलाया।।

मानव नहीं विनाशक है तू।
धरती का श्रृंगार घटाया ।।

कितने पंक्षी पशु हैं मारे।
बोल लालची क्या है पाया।।

अब आपदाओं को झेल़ो।
धरती मां को गुस्सा आया।।

जिसने जीवन दिया तुझको।
तूने उसको ही है रूलाया।।

धरती की बस यही वेदना
आदमी की मर गई संवेदना।।
========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
[5/9, 4:40 PM] Naresh Sagar: दिनांक….09/05/2021
विधा ……..गीत
विषय … धरती की वेदना
======
जिसने जीवन को महकाया।
जिसने मीठा आम खिलाया।।

जिसने मिठा जल दे हमको।
सांसों का श्रृंगार कराया ।।

जिसकी अग्नि पाकर के।
हमने पके भोजन को खाया।।

जिसकी नाचती डालीं से।
आक्सीजन को हमने पाया।।

आज उसी धरती की छाती पर।
हमने कितना भार बढ़ाया।।

अपने मतलब के कारण ही।
कितने पेड़ों को काट गिराया।।

कल कल बहती नदियों के।
पानी को ज़हरीला बनाया।।

फसल नाम पर ज़हर उगाते।
जंगल जंगल को कटवाया।।

धरती सबका भार उठाती।
तूने धरती को ही रूलाया।।

मानव नहीं विनाशक है तू।
धरती का श्रृंगार घटाया ।।

कितने पंक्षी पशु हैं मारे।
बोल लालची क्या है पाया।।

अब आपदाओं को झेल़ो।
धरती मां को गुस्सा आया।।

जिसने जीवन दिया तुझको।
तूने उसको ही है रूलाया।।

धरती मां की यही वेदना ।
मर गई आदमी की संवेदना।।
========
जनकवि/ बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
[5/9, 9:12 PM] Naresh Sagar: सांसे अब कम हो गई, भरे खूब शमशान।
इंसा से डरने लगा, देखो अब इंसान ।।

बेखौफ शायर
[5/10, 10:37 AM] Naresh Sagar: झूंठ लिखदूं कभी तो वो बोल जाता है।
मेरे सच पर खून उसका खौल जाता है।।
अजीब आदमी है आज का ये आदमी ।
अंधभक्ति में सच की ताकत को भूल जाता है।।
[5/10, 7:21 PM] Naresh Sagar: चांद भी तनहा है ,आज मेरी तरहा।
आ जाओ तुम आज,किसी बदली की तरहा।।
[5/11, 10:58 PM] Naresh Sagar: बाजार में दवाई , अस्पताल में बैड नहीं मिलता।
खुले हैं ठेके दारू के,चाहे वे लोग जितनी ।।
[5/11, 10:58 PM] Naresh Sagar: बाजार में दवाई , अस्पताल में बैड नहीं मिलता।
खुले हैं ठेके दारू के,चाहे जितनी ले लो ।।
[5/11, 11:01 PM] Naresh Sagar: दारू जी भर मिल रही,गायब हुई दवाई।
मौत के मंजर देखकर,जी भर रोई रूबाई।।
[5/11, 11:02 PM] Naresh Sagar: कोरोना के नाम पर ,अंगों का व्यापार।
ऐसे मंज़र देखा भी, चुप बैठी सरकार।।
[5/11, 11:05 PM] Naresh Sagar: खुद को शायर बोलते,डरते खूब जनाब।
माईक पर है बोलते,पहन दूरंगी नकाब।।
[5/11, 11:06 PM] Naresh Sagar: सच बोलने की कसम खाई है।
जान आफ़त में बड़ी आई है।।
[5/11, 11:07 PM] Naresh Sagar: आज के मंजर नहीं देखे जाते।
[5/11, 11:09 PM] Naresh Sagar: लाचार मजबूर लोगों के ऐंठे जा रहे कान।
जी भर डंडा पैलते ,काटे जा रहे चालान।।
[5/12, 7:28 AM] Naresh Sagar: आज भारत की, ऐसी तस्वीर है।
लिख दी जालिम ने, कैसी तकदीर है।।
[5/12, 7:29 AM] Naresh Sagar: आज भारत की , ऐसी तस्वीर है।
लिख दी जालिम ने, कैसी तकदीर है।।
[5/13, 6:37 AM] Naresh Sagar: मुसीबत में बनकर मसीहा, जो सामने आया।
उसके हाथों में ये हथकड़ी, अच्छी नहीं लगती।।
=====बेख़ौफ़ शायर
13/05/21
[5/13, 6:38 AM] Naresh Sagar: मुसीबत में बनकर मसीहा, जो सामने आया।
हाथों में उसके हथकड़ी, अच्छी नहीं लगती।।
=====बेख़ौफ़ शायर
13/05/21
[5/13, 5:56 PM] Naresh Sagar: पास- पास होते हुए भी, नहीं हो रही दीद।
ऐसे हालातो में बोलो, कैसे मनाएं ईद।।
[5/13, 6:14 PM] Naresh Sagar: ईद है पर दीद का आलम नहीं।
इश्क का लाइफ में कोई कारण नहीं।।
[5/13, 9:44 PM] Naresh Sagar: ईद है पर दीद का आलम नहीं।
लाकडाऊन में पास बालम नहीं।।
कैसे पहने कपड़े नये और घर सजे।
आटा है ना तेल बची दालम नहीं।।

इश्क का लाइफ में कोई कारण नहीं।।
[5/13, 9:44 PM] Naresh Sagar: ईद है पर दीद का आलम नहीं।
लाकडाऊन में पास बालम नहीं।।
कैसे पहने कपड़े नये और घर सजे।
आटा है ना तेल बची दालम नही।।
[5/13, 9:51 PM] Naresh Sagar: ईद है पर दीद का आलम नहीं।
लाकडाऊन में पास बालम नहीं।।
कैसे पहने कपड़े नये और घर सजे।
आटा है ना तेल बची दालम नही।।
====बेख़ौफ़ शायर
[5/14, 9:33 PM] Naresh Sagar: आज जी भरकर इश्क कर।
इश्क में डूबकर इश्क कर।।
हर तरफ मौत का पहरा है।
बिन डरें तू इश्क का श्रृंगार कर।।
जानें कब छूट जाएं सांस ये।
टूटकर होंठों से होंठों पर बार कर।।
डरकर ना तू बैठ घर में कैद हो।
बाहर आ जिंदगी से प्यार कर।।
मरना है तो क्यूं मरे डर डर के हम।
आ करीब इश्क से दो-चार कर।।
फिर मिलेंगे कार्ड ये एक्सपायर हुआ।
जो भी करना आज और अभी कर।।
मैंने ग़ज़लों में बहुत छुपाया तुझे।
आ मुझे तू खुलकर आज बदनाम कर।।
लिख ना पाए जो अभी लिखने वाले।
हम लिखेंगे मिलकर वो एतबार कर ।।
रोशनी कब तक है साथ किसको पता।
मेरी नज़रों से तू नजरें चार कर ।।
जिंदगी जिंदादिली का नाम है ।
मिलकर तू फिर इश्क पर एहसान कर।।
डर डर कर हमको नहीं जीना आता।
आज “सागर” हुशन का श्रृंगार कर ।।
========
बेख़ौफ़ शायर………13/05/21
[5/18, 5:51 AM] Naresh Sagar: कौन लिखता है मुकद्दर, मुझे पता दे दो।
कैसे बनते हैं शिकनदर, मुझे पता दे दो।।
अब नहीं होता सब्र, दलिले सुनकर।
कौन सुनता है सदा ,उसका मुझे पता दे दो।।
[5/18, 6:02 AM] Naresh Sagar: बिखरे पन्नों की तरह है जिंदगी।
सूखे पत्तों की तरह है जिंदगी
टूटे खबबबो की तरह है जिंदगी
बिखरे पानी की तरह है जिंदगी
गुजरी यादों की तरह है जिंदगी
कड़वी बातों की तरह है जिंदगी
आग के दरिया की तरह है जिंदगी
बहते दरिया की तरह है जिंदगी
जेठ की धूप जैसी है जिंदगी
कच्चे रस्तों की तरह है जिंदगी
उजड़े गुलशन की तरह है जिंदगी
सूखे दरिया की तरह है जिंदगी
कभी सावन तो कभी बैसाख है जिंदगी
खुशी और ग़म का मेल है जिंदगी
हार और जीत का खेल है जिंदगी
कभी जमीं तो कभी आसमां है जिंदगी
कभी धूप तो कभी छांव है जिंदगी
रिश्तों का बिछा हुआ जाल है जिंदगी
चौसर का बिछा हुआ जाल है जिंदगी
फिर भी जीनी है हंसकर हमें जिंदगी
“सागर” फिर मिले ना मिले जिंदगी
=======18/05/21
[5/19, 4:47 AM] Naresh Sagar: हसरतें बढ़ने लगी है
उम्मीदें लड़ने लगी है
ज़िन्दगी किसकी सगी है।
मुझसे ये कहने लगी है
[5/19, 5:17 AM] Naresh Sagar: माना नाजुक वक्त है, हिम्मत रख मजबूत।
जीत उसी की है यहां,दिल में जिसके प्रीत।।
[5/19, 5:21 AM] Naresh Sagar: जीतेगा बस वो यहां,जो ना कभी घबराएं।
समय के कड़वे घूंट को,हंसकर जो पी जाएं।।
[5/19, 5:23 AM] Naresh Sagar: मौत डरावे बाबरे ,मत इससे घबराएं।
ये तो आनी आयेगी,जब चाहे ले जाएं।।
[5/19, 5:25 AM] Naresh Sagar: जितनी सांसें है मिली,हंसकर उनको जी।
डूब किसी के प्रेम में,अम्रत का रस पी।।
[5/19, 5:29 AM] Naresh Sagar: देख क़यामत हार मत, युक्ति अच्छी सोच।
ज्यादा दिन टिकती नहीं,आयी हाथ में मोच।।
[5/19, 5:44 AM] Naresh Sagar: जितनी सांसें है मिली,हंसकर उनको जी।
डूब किसी के प्रेम में, अमृत का रस पी।।
[5/19, 5:56 AM] Naresh Sagar: इश्क में डूबकर मर जानें दें।
इस दौर को यूं गुज़र जाने दे।।
सांसे मिली तो रोज़ लड़ना तुम।
इस घड़ी में तो करीब आनें दे ।।
[5/19, 5:59 AM] Naresh Sagar: डर डर के अब जीने की, आदत नहीं रही।
शायर हूं खुलेआम , इश्क़ की बात करता हूं।।
……..19/05/2021
[5/19, 6:03 AM] Naresh Sagar: तेरी आंखों में डूब जाऊंगा, क्या करेगा कोरोना।
कई बार क़यामत से हम, पहले भी तो लड़े है ।।
[5/19, 6:12 AM] Naresh Sagar: जब भी सोचें बात कुछ,बस अच्छा ही सोच।
डरकर ना यूं
[5/19, 6:18 AM] Naresh Sagar: मन मत होवे बाबरा,ना ऐसे घबराएं।
भीष्म की तरहा बता,कब तक शोक मनाएं।।
[5/19, 6:23 AM] Naresh Sagar: अच्छे दिन के नाम से,डरने लगा समाज।
कारोबार सब बंद है, महंगा हुआ अनाज।।
[5/19, 6:26 AM] Naresh Sagar: देश बचाने के लिए,राजा जी हैं मौन।
अच्छे दिन की बात पर,करें बात अब कौन।।
[5/19, 6:29 AM] Naresh Sagar: हमको अब भाते नहीं, अच्छे दिन श्रीमान।
तुम जो कुर्सी छोड़ दो,बच जायेंगे प्राण।।
[5/19, 6:33 AM] Naresh Sagar: दाढ़ी लम्बी हो गई, छोटी हो गई बात।
हमको तो हर बात में,छुपी लगे हैं घात।।
[5/19, 6:49 AM] Naresh Sagar: भूखमरी फैली यहां, बढ़ेगा अब अवसाद।
बर्बादी का दे दिया , राजा ने प्रसाद।।
[5/19, 6:52 AM] Naresh Sagar: इम्यूनिटी सबकी घटे, सिकुड़ जाएगी सोच।
पहरे हर घर पर लगे, बाल रहे सब नोंच।।
[5/19, 6:55 AM] Naresh Sagar: पूछेगा अब कौन ये,राजा जी से बात।
अच्छे दिन की कर रहे,बोलो कब शुरूआत।।
[5/19, 6:57 AM] Naresh Sagar: माना सब है अब डरें, देश मौन है आज।
इस राज़ के पीछे भी,छुपा हुआ है राज़।।
[5/19, 6:59 AM] Naresh Sagar: वैसे भी अब मौत तो , खूब रही पगलाए।
ऐसे हालातो में सच,बाहर कोई तो लाएं।।
[5/19, 7:00 AM] Naresh Sagar: वैसे भी मैं मौत से जूझ रहा हूं यार।
फिर ना क्यूं करता रहूं,झूंठ पै मैं प्रहार।।
[5/19, 7:34 AM] Naresh Sagar: लाकडाउन में हमने भी बढ़ा ली दाढ़ी अपनी
लाकडाऊन टूटा तो
[5/19, 7:37 AM] Naresh Sagar: उम्र भर जो डूबने से डरते रहे।
आज वो, दरिया के होकर रह गये।।
[5/19, 7:39 AM] Naresh Sagar: नदियों में कहीं नालों में,वो देखें गये।
जिंदगी की आस में,जो नहीं घर तक गये।।
[5/19, 7:43 AM] Naresh Sagar: जिस खामोशी को तुम लपेटे डोलते हो।
सच को आज सच नहीं तुम बोलते हो।।
एक दिन ये ही अदा डसलेगी तुमको।
इस जुवां से क्यूं ना कुछ तुम बोलते हो।।
[5/19, 7:46 AM] Naresh Sagar: मौत के डर से ख़ामोश रहने वाले।
गीत कैसे लिखेंगे वो इंकलाब के ।
ज़मीर बेचकर जो चाहता हो शोहरत।
[5/19, 7:51 AM] Naresh Sagar: जिस खामोशी को तुम लपेटे डोलते हो।
सच को आज सच नहीं तुम बोलते हो।।
एक दिन ये ही अदा डसलेगी तुमको।
इस जुवां से क्यूं ना तुम कुछ बोलते हो।।
[5/19, 7:54 AM] Naresh Sagar: उम्र भर डूबने से जो, यूं डरते रहे।
आज वो, दरिया के होकर रह गये।।
……. जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ. नरेश “सागर”
[5/19, 9:55 AM] Naresh Sagar: तैर रही है लाशें, देखो पानी में।
श्मशानों में जल गये, लोग जवानी में।।
राजा जी की खामोशी कुछ कहती हैं।
छुपा हुआ है राज़ बड़ा कहानी में ।।
[5/19, 8:37 PM] Naresh Sagar: विधा…. गीत
विषय – पंचशील
दिनांक….19/05/2021
सिद्धार्थ दोबारा आ जाओ
================
ए- विश्व शांति के, पहले मसीहा आ जाओ
बुद्धम- शरणम- गच्छामि, वाले मसीहा आ जाओ
ए विश्व शांति के ………..
बिखरा पड़ा धर्म यहां, मानव- मानव से है जुदा
जहरीली बेसुरी हिंसक, होने लगी है फिज़ा
हर और धर्म का प्रचारक, बन लूट रहा है मनुवाद
धम्मम- शरणम- गच्छामि के, अनुयायी तथागत आ जाओ
ए-विश्व शांति के …………..
हम सारे अंगुलिमाल हैं, पापी है अत्याचारी है
अभी समझ कोई ना हमको है, लगता है व्यभिचारी हैं
हम शील- करुणा ना जानें, ना जाने अप्पो दीपो: भव:
संघम- शरणम- गच्छामि की, तुम राह दिखाने आ जाओ
ए- विश्व शांति के …………
ये धरा खड़ी विस्फोटों पर, हर आंख में सुलगे अंगारे
लोभी- लालच- मद चुर हुए, मन के भटके ये बंजारे
ए-पंचशील के शिरोमणि, फिर से धरा पर तुम आना
त्राहि-त्राहि विश्व पटल हुआ, संदेश सुनाने आ जाओ
ए- विश्व शांति के …………….
नतमस्तक सारा विश्व हुआ, सम्राट से अशोक महान हुआ
थे शूद्र डॉ. अंबेडकर, छूने से बौद्ध प्रचार हुआ
हे विश्व पटल पर राज बड़ा, करुणा कारिणी गौतम तेरा
“सागर” संग विश्व पुकारे यही, सिद्धार्थ दो बारा आ जाओ
ए-विश्व शांति के ,पहले मसीहा आ जाओ
बुद्धम- शरणम- गच्छामि, वाले मसीहा आ जाओ
========
जनकवि /बेखौफ शायर
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
ग्राम- मुरादपुर -सागर कॉलोनी, गढ़ रोड, नई मंडी, हापुड़
(( इंटरनेशनल साहित्यिक अवार्ड से सम्मानित))
[5/19, 11:06 PM] Naresh Sagar: जिंदा रहना है तो, बोलना भी सीखये।
खामोशी की चादर तो, मुर्दे भी ओढ़े रहते हैं।।
[5/20, 10:35 PM] Naresh Sagar: घर बचाने में जलते हैं हाथ, तो जल जाने दो।
हौसला और घोंसला के आगे, ज़ख्म मायने नहीं रखता।।
[5/20, 10:37 PM] Naresh Sagar: कैसे जल जाने दूं देश को जालिम के हाथों।
जितना कर सकता हूं सागर,करके ही मानूंगा।।
[5/20, 10:45 PM] Naresh Sagar: कुछ बदलाव आए ना आए, नहीं मालूम मुझे।
सोचने पर मगर सबको, मैं मजबूर कर दूंगा।।
[5/20, 10:46 PM] Naresh Sagar: मेरी क़लम बिकाऊ नहीं है,ना मैं चाटुकार हूं।
देश का रक्षक हूं मैं, दुश्मन के लिए तलवार हूं।।
[5/20, 10:48 PM] Naresh Sagar: गुलाम जब आज़ादी की बात करने लगे।
समझ जाओ विभिषण अभी तक मरा नहीं।।
[5/20, 10:52 PM] Naresh Sagar: भगतसिंह की तरह हम भी तारीख़ लिखेंगे।
मेरी क़लम इंकलाब की स्याही से चलती है।।
अंजाम की परवाह नहीं करता सागर।।
[5/20, 10:54 PM] Naresh Sagar: क़ातिल को खुदा लिखने वाले ,सुखनवर हो नहीं सकते।
इतिहास के पन्ने उन्हें गद्दार लिखेंगे।।
[5/21, 11:23 AM] Naresh Sagar: क्या है….. जिंदगी
=============
हंसना है जिंदगी,
रोना है जिंदगी
गिरकर संभल जाने को,
कहते हैं जिंदगी।।
यूं तो उजड़ जाते हैं
कितने ही आशियाने
सपनों का महल बनाने को
कहते हैं जिंदगी।
सागर भी हो पास
नदियां भी बहे कितनी
आंसुओं को पी जाने को
कहते हैं जिंदगी।
तूफान भी आते हैं
शैलाव भी आतें हैं
इन सबसे कहीं ज्यादा
वीरान है जिंदगी ।
कांटों से घीरे रहना
अकेले राहों पर चलना
गुनगुनाने-मुस्कुरानें को
कहते हैं जिंदगी ।।
=============
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश कुमार “सागर”
इंटरनेशनल साहित्य अवार्ड से सम्मानित

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