बिकाऊ*सत्य
(गजल/गीतिका)
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सत्य बीक रहा यारो व्यापार हो गया है,
सारा ही जमाना खरीददार हो गया है!!
कहने को अब यहाँ सब देते हैं भरोसा,
किन्तु इमाने इंसा दागदार हो गया है!!
रिश्तों की लगती बोली अहले दिन यहाँ पे,
ऊचें बोली वाला रिश्तेदार हो गया है!!
रूपयों का खेल सारा, पैसे का है जमाना,
रूपये के बल वो यारो, समझदार हो गया है!!
सारे जहां से अच्छा हिन्दूस्ता हमारा,
गद्दारों से हिन्दे दामन दागदार हो गया है!!
इमान बीक रहा है सस्ते में अब यहाँ पे,
इमान का फरिस्ता खरीददार हो गया है!!
अस्मत का होता सौदा आयेदिन यहाँ पे,
इज्ज़त का लुटेरा, पहरेदार हो गया है!!
खुली हुईं ये आंखें, और देखता सचिन है,
कैसे नाग आस्तीने , समझदार हो गया है!!
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”