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24 Jan 2020 · 4 min read

बाल श्रम

जिसकी अभी खेलने खाने की उम्र है उसे पेट की खातिर श्रमिक बनने के लिए मजबूर होना पड़े तो उस बचपन की मनःस्थिति का अंदाज लगाना बहुत ही मुश्किल है।
कोई भी माँ क्यों ना चाहेगी कि उसका बच्चा भी खेलें कूदे और स्कूल जाकर शिक्षा हासिल करें ।परंतु उसकी भी गरीबी हालत इन सबके लिए उसे मौका नहीं देती है ।और वह दिल पर बोझ रखकर अपने आँखों के तारे को यह सब सहने के लिए मजबूर कर देती है है ।क्योंकि पति पत्नी दोनों भी श्रम करें तो परिवार को दो जून रोटी मिलना भी मुश्किल है । यह एक कटु सत्य है जिससे समाज का सबसे निचला तबका प्रतिदिन जूझ रहा है।
इस तबके के लिए प्रतिदिन जीवित रहने के लिए एक संघर्ष है।
जिससे हम शायद अनभिज्ञ हैं।
शासन ने बाल श्रम को दंडित अपराध की श्रेणी में लाकर कानून तो बना दिया है ।परंतु इस तबके के के परिवार कल्याण हेतु श्रमिकों को उचित पारिश्रमिक एवं उनके आश्रितों के लिए मूलभूत सुविधाओं के विकास पर कोई अधिक ध्यान नहीं दिया है । जिसके फलस्वरूप गरीब बच्चों का शोषण गांव की अपेक्षा शहरों में अधिक हो रहा है ।
हमारा तथाकथित मध्यम एवं उच्च वर्ग भी इस प्रकार के शोषण करने से अछूता नहीं है ।
केवल कुछ प्रबुद्ध वर्ग द्वारा आयोजित चर्चाओं में इस विषय पर प्रकाश डालने के पश्चात् उस पर सकारात्मक कार्यवाही के अभाव में यह विषय फिर ठंडे बस्ते में कैद हो जाता है ।और उसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकल पाता और इस प्रकार का शोषण निरंतर होता रहता है।
दरअसल समाज में अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए नीति एवं आदर्शों को ताक पर रखकर इस प्रकार के शोषण को अंजाम दिया जाता है ।जिसमें मानवीय संवेदना का अभाव होता है।
देश के राजनीतिज्ञ भी इसे अपनी वोट की राजनीति का मुद्दा बनाकर पेश करने से पीछे नही हटते । परंतु उनकी सोच में वोट की राजनीति ही हावी रहती है और इस वर्ग हेतु वास्तविक संवेदना का अभाव होता है ।
यदि गंभीरता से मनन् किया जाए तो निचले स्तर के गरीब परिवारों की दशा बहुत शोचनीय है। उन्हे मौलिक सुविधाओं जैसे पीने का पानी, खाना, कपड़ा ,चिकित्सा एवं आवास की सुविधाओं के लिए दिन प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है ।
यदि उनके परिवार के सभी सदस्य काम पर नहीं जाएंगे तो उन्हें भूखे पेट सोना पड़ेगा। अतः हर एक सदस्य का काम पर जाना उनकी मजबूरी है ।जिसमें छोटे बच्चे भी शामिल हैं ।
जहां तक मेरा अनुभव है बड़े-बड़े शहरों में आप इन परिवार के प्रत्येक सदस्य को कुछ न कुछ कुछ कार्य अपने जीवन यापन के लिए करते देख सकते हैं।
इन परिवारों की महिलाओं को बड़े-बड़े फ्लैट और घरों में झाड़ू पोछा बर्तन मांजना कपड़े धोना छोटे बच्चों को संभालना इत्यादि कार्य करते देख सकते हैं । कुछ लोग भवन एवं अन्य निर्माण कार्यों में दिहाड़ी मजदूर की तरह कार्य कर रहे हैं ।
मैंने छोटे-छोटे बच्चों को रेस्टोरेंट एवं होटलों में कार्य करते देखा है देखा है ।कुछ बच्चों को मैंने बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल एवं दुकानों में भी कार्य करते देखा है। जो उनके शोषण का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।
परंतु हमें इस तरह की विसंगतियों को अनदेखा किए जा रहे हैं जो हमारी इस दिशा में संवेदनहीनता का परिचायक है ।
हम बड़ी बड़ी सभाओं में एवं चर्चाओं में भाग लेकर एवं भाषण देकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं ।
परंतु इस समय समस्या के मूल पर जाकर इसके निराकरण का कोई ठोस प्रयास नहीं करते हैं।
इस समस्या के समय रहते निराकरण ना होने से बचपन में संस्कारों के अभाव में एवं सही दिशा निर्देश न मिलने पर राह भटकने की संभावनाएं अधिक बढ़ जाती हैं ।
जीवन का लक्ष्य केवल पैसा कमाना हो जाता है चाहे किसी भी तरह से कमाया जाए । इस तरह बचपन में ही आपराधिक प्रवृत्तियों विकास की संभावनाएं बढ़ जाती हैं । जो समाज के लिए घातक सिद्ध होती हैं ।
इस स्थिति का फायदा संलग्न अपराधी , देशद्रोही एवं आतंकवादी तत्व भी उठा रहे हैं ।
और बच्चों की मानसिकता को भ्रष्ट कर उनमें राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलग्न होने के लिए जहर घोल रहे हैं ।
यह सब एक सोची-समझी साजिश के तहत हो रहा है ।
जिसमें कुछ विदेशी ताकतों का हाथ होने से भी इंकार नहीं किया सकता है ।
अतः यह आवश्यक है कि हममें से प्रत्येक यह प्रण ले कि हम बाल श्रम का विरोध करेंगे । और इसे समाज में पनपने से रोकेंगे ।
साथ ही साथ हम ऐसे बच्चों को उनकी मूलभूत आवश्यकताएं एवं सुविधाओं को प्रदान करने के लिए प्रयत्न करेंगे ।
एवं अपने प्रभाव का उपयोग कर समाज के हर स्तर पर इस हेतु जागृति पैदा करने का प्रयत्न करेंगे।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 8 Comments · 532 Views
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