Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Apr 2017 · 3 min read

बाल परित्यक्ता

जुम्मे – जुम्मे उसने बारह बसंत ही देखे थे कि पति ने परस्त्री के प्रेम – जाल में फँस कर उसे त्याग दिया । उसका नाम उमा था अब उसके पास दो साल की बच्ची थी जिसके लालन -पालन का बोझ उसी पर ही था साथ ही सुनने को समाज के ताने भी थे । मर्द को भगवान ने बनाया भी कुछ ऐसा है जो अपने पर काबू नहीं कर पाता और फँस जाता है पर स्त्री मरीचिका में । बंधन का कोई महत्व नहीं । प्रेम भी अंधा होता है लेकिन इतना भी नहीं कि अग्नि को साक्षी मान कर जिस स्त्री के साथ सात फेरे लिए है उस बंधन को भी तोड़ डाले।

धीरे – धीरे बच्ची बड़ी होती गयी । बच्ची का नाम उज्जवला था साफ वर्ण होने के कारण माँ ने उसको उज्जवला नाम दिया था ‘ जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही वह और भी सुंदर लगने लगी । लेकिन अपनी इस सुन्दरता की ओर उसका बिलकुल ध्यान न था । यह सुन्दरता उसके लिए अभिशाप बनती जा रही थी । चलते फिरते युवकों की नजरें उस पर आकर सिमट जाती थी ।

सामान्य लड़कियों से भिन्न उसे गुड्डे गुड़ियों के खेल कदापि नहीं भाते थे । प्रकृति के रमणीय वातावरण में जब उसकी हम उम्र लड़कियाँ लगड़ी टॉग कूद रही होती थी गुटके खेल रही होती थी वह किसी कोने में बैठी अपनी माँ के अतीत को सोच रही होती थी कि कहीं ऐसी पुनरावृत्ति उसके साथ न हो और भय से काँप उठती थी ।

मलिन बस्ती में टूटा – फूटा उसका घर था लोगों के घर -घर जाकर चौका बर्दाश्त करना उनकी आय का स्रोत था माँ बच्ची को पुकारते हाथ बटाँने के लिए कहा करती थी , बेटी कहा करती थी माँ ‘मुझे होमवर्क’ करना है । माँ की स्वीकरोक्ति के बाद बेटी उज्जवता पढ़ने बैठ जाती । बच्ची पास के निशुल्क सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाया करती थी किताब कापी का खर्च स्कालरशिप से निकल जाता था ।

धीरे – धीरे माँ की आराम तंगी को समझ बेटी ने ट्यूशन पढाने का काम शुरू कर दिया । मेट्रिक की परीक्षा पास करते ही माँ उमा को ब्याह की चिंता सताने लगी । परित्यक्ता होने के कारण बेटी के साथ बाप का नाम दूर चला गया था लोग गलत निगाह से देखते थे । इसलिए जब माँ घर से दूर होती तो उज्जवला को अपने साथ ले जाती ।

उमा को भय था कि उसकी बेटी उज्जवला भी अपनी माँ की तरह घर , परिवार एवं समाज से परित्यक्त न हो ।इसलिए हर पल उज्जवला का ध्यान रखती थी क्योंकि पति के छोड़ने के बाद जितना तन्हा और और अकेला महसूस करती थी उसकी कल्पना मात्र से काँप उठती थी । पति के छोड़ने के बाद सास ससुर ने भी घर से निकाल दिया था , अतः दुनियाँ में कोई दूसरा सहारा न था । माँ बाप तो दूध के दाँत टूटने से पहले ही राम प्यारे हो गये थे ।
उसे खुद अपना सहारा बनने के साथ बेटी का सहारा भी बनना था ।

उज्जवला की सुन्दरता भी किसी अलसाए चाँद से कम न थी पर इस सुन्दरता का पान करने वाले मौका परस्ती भी कम न थे । इसलिये माँ उमा डरती थी कि उसकी बेटी कहीं जमाने की राह में न भटक जाए ।

अपनी यौवनोचित चंचलता को संभालते हुए उसने आत्मनिर्भर बनने की कोशिश की अतः उसने पास के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने का निर्णय लिया । अब माँ -बेटी के जीवन में नया मोड़ आ गया था अब उसकी माँ को लोग “मैडम जी की माँ के नाम से पुकारते थे । इस तरह समाज में उसका नया नामकरण हो चुका था । अब उसके रिश्ते भी नये आने लगे थे , लेकिन माँ से जुदा होने के अहसास के साथ उज्जवला को कोई रिश्ता कबूल नहीं था ।

लेकिन माँ उमा का शरीर जर्जर हो चुका था इसलिए उसकी इच्छा थी कि उसकी बेटी शीघ्र ही परिणय सूत्र में बँध जाये लेकिन बेटी जब विवाह की बात चलती तभी “रहने माँ , तुम भी “कहकर इधर -उधर हो जाती ” थी । इसलिए माँ ने एक सुयोग्य वर देखकर उज्जवला का विवाह कर दिया ।बेटी के जाते ही माँ फिर से नितांत अकेली हो गयी थी ।

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
74 Likes · 2 Comments · 627 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
अब उनकी आँखों में वो बात कहाँ,
Shreedhar
हे आशुतोष !
हे आशुतोष !
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
💐प्रेम कौतुक-486💐
💐प्रेम कौतुक-486💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
रंग लहू का सिर्फ़ लाल होता है - ये सिर्फ किस्से हैं
Atul "Krishn"
जैसी सोच,वैसा फल
जैसी सोच,वैसा फल
Paras Nath Jha
I lose myself in your love,
I lose myself in your love,
Shweta Chanda
लहर आजादी की
लहर आजादी की
चक्षिमा भारद्वाज"खुशी"
यकीन
यकीन
Dr. Kishan tandon kranti
प्यारा भारत देश है
प्यारा भारत देश है
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
gurudeenverma198
कितनी आवाज़ दी
कितनी आवाज़ दी
Dr fauzia Naseem shad
फेसबुक गर्लफ्रेंड
फेसबुक गर्लफ्रेंड
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)*
*गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
मां
मां
Monika Verma
अफसोस-कविता
अफसोस-कविता
Shyam Pandey
पथ प्रदर्शक पिता
पथ प्रदर्शक पिता
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
दिल के अरमान मायूस पड़े हैं
Harminder Kaur
पुरानी ज़ंजीर
पुरानी ज़ंजीर
Shekhar Chandra Mitra
दिल लगाएं भगवान में
दिल लगाएं भगवान में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
माना दौलत है बलवान मगर, कीमत समय से ज्यादा नहीं होती
पूर्वार्थ
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
बेशक नहीं आता मुझे मागने का
shabina. Naaz
"आंधी की तरह आना, तूफां की तरह जाना।
*Author प्रणय प्रभात*
दो धारी तलवार
दो धारी तलवार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
2322.पूर्णिका
2322.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
चौमासा विरहा
चौमासा विरहा
लक्ष्मी सिंह
चल अंदर
चल अंदर
Satish Srijan
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
sushil sarna
शृंगारिक अभिलेखन
शृंगारिक अभिलेखन
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पुस्तक समीक्षा - अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर रेत पर कश्तियाँ
पुस्तक समीक्षा - अंतस की पीड़ा से फूटा चेतना का स्वर रेत पर कश्तियाँ
डॉ. दीपक मेवाती
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
Acharya Rama Nand Mandal
Loading...