बाली का उपालंभ
सुना था तुम हो
इक्ष्वाकु वीर महान
एक वाण प्रहार से
गिर करता तुमको
दण्डवत प्रणाम ।
आज ये मैंने क्या देखा
ताड़ की आड़ में
एक वीर को
बहेलिया रूप धरते देखा ।
इक्ष्वाकु वंशज
है आर्य पुत्र
विस्वामित्र के शिष्य
क्या यही सीख कर आया है ।
रण भूमि छोड़
रण शक्ति छोड़
वक्षस्थल छोड़
चोरो सा भेष बनाया है।
सूर्य ताप , हे चंद्र छाप
पहने गेरुहा वस्त्र
लिए मायावी अस्त्र
ये कौन सा स्वांग रचाया है ।
तिरिया को छुड़ाने
दैत्येन्द्र हराने
स्वार्थ सिध्द करने
भाई को भाई का हत्यारा बनाया है।
केवल पक्ष जान
अर्ध सत्य जान
ना विपक्ष जान ना कथ्य जान
वेदों ने कौन सा ज्ञान सिखाया है .?
आर्य सम्राट
हे रघुनाथ
सुग्रीव ने तुमको
कायरता का कौन सा पाठ पढ़ाया है.?
क्या , आखेट मेरा
न्याय था या अनुबन्ध था.?
क्या तूने जाना
सुग्रीव से मेरा क्या सम्बन्ध था.?
सन्धि भी उपाय था
भातृ मिलन सुविचार था
ब्याध सा आघात करना
क्या रघुवंशी वीरता का पर्याय था.?
शक्ति तुझे थी चाहिए
एक बार तो मुझसे बोलता
मन के द्वार तो खोलता
तेरी प्राण सिया को , मैं
तेरी बाहों में ला छोड़ता ।
हे दशरथ नन्दन
ये कूटनीति किसने सिखाई
मित्र का शस्त्रु अपना शस्त्रु
फिर न्याय और अन्याय
कैसे होगी जन सुनवाई .?
क्या शेष अब अंतर बचा
वीरता का ना मान रहा
मायावी लंकेश को हराने
ब्रह्म ने भी मायावी का भेष रचा ।