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27 Jun 2020 · 1 min read

” बाबू ( पिता ) “

” पिता “……
जिसके दम पर हमने जी भर के मनमानी की
बेहिसाब शैतानी की
जिसने हमें सर पर चढ़ाया
और हमने सर पर चढ़ कर
ये दिखाया कि देखो
हम है बेटी
अपने पिता कि दुलारी थीं
बेटे से भी प्यारी थीं
उनके पास
हमारी हर गलती कि माफ़ी थी
और यही माफ़ी हमें
अपनी गल्तियों का एहसास करने के लिए काफी थी
आज वों नहीं हैं ….
कौन कहता है ???
वों हमारी रगों में हैं
दिखाई देतें हमें सगों में है
जनम दर जनम हम मिलेंगे
ये विश्वास देता हमें राहत है
फिर से बाबू – बाबू कह के पूकारेंगें
यही हमारी चाहत है !!!

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा ,17/6/12 )

Language: Hindi
5 Likes · 4 Comments · 489 Views
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