बादल
बादल
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पनप रहे हैं कैक्टस
बंजर हो रही धरा पर
काले और सफेद बादल साथ में
बरसने लगते हैं देखकर
पनपते हुए कैक्टस वहां……..…………….
इंतज़ार रहता है बारिश का
इंसान को भी
काले और सफेद बादल साथ में
निकल जाते हैं अक्सर
बिना बरसे ही
उस धरा पर
उगा करते थे कभी गुलाब जहां……………
डरने लगा हूं
कैक्टस की चुभन के ख़्याल से
कहीं जकड़ ही न ले मुझे
हवा भी छूने से कैक्टस को
घायल होकर
वहां से रुख़ मोड़ने लगी है
भूलने लगे हैं
हवा के झोंके भी
वह खुशनुमा अहसास
गुलाब के फूलों से मिलने का
अपने में उनकी खुशबू
घुलने का कभी वहां……………………….
छूना चाहता हूं गुलाब
कांटों के बीच कभी
कर लेना चाहता हूं अहसास
उसकी कोमलता का
उसकी खुशबू का
देखकर उसकी खूबसूरती को वहां…………..
जानता हूं
नहीं जानते हैं बादल
कहां बरसना है उन्हे
लेकिन व्यवस्था में भी
कुछ बादल संवेदनहीन होते हैं
पनपने देते हैं कैक्टस
नहीं दिखाई देती है शायद उन्हे
सूखती और फटती धरा
नहीं बरसते हैं वहां……………………………
लेकिन
बरसते हुए चले जाते हैं
सफेद और काले बादल साथ में
कैक्टस है आज जिस धरा पर
पनपा करते थे कभी गुलाब जहां
चले जाते हैं सभी बादल
सिर्फ गरजते हुए
देखकर गुम होते गुलाब भी
उस धरा पर से
जगाकर उम्मीद फिर से
सफेद और काले के बीच
देखते हुए कैक्टस को
बरसने की वहां………………………………