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3 Jun 2021 · 1 min read

बादल को बरसते देखा।

बादल को बरसते देखा

बूंद-बूंद की प्यास लिए धरती को तरसते देखा,
बहुत दिनों बाद मैंने बादल को बरसते देखा।
ये वन, ये पवन, ये नयन मनुजों-चतुष्पदों के विचलित,
बहुत दिनों बाद मैंने पतंगों को चहकते देखा।।

बहुत दिनों बाद कृषकों की खुशहाली देखी,
शुष्क और तप्त धरती की हरियाली देखी।
कृषिकाओं को घर-आंगन में मचलते देखा।
बहुत दिनों बाद मैंने बादल को बरसते देखा।।

बहुत दिनों बाद काले बादलों को,
गांवों की गलियों से गुजरते देखा।
शुष्क और तप्त वीरान ड्योढ़ियों में,
नन्हे मुन्ने नादानों को कुदकते देखा।।
बहुत दिनों बाद मैंने बादल को बरसते देखा।।

बहुत दिनों बाद कोयल की मिठी तान सुनी,
सरगम के सात सुरों से सजी हुई गान सुनी।
आमों के मंजरियों से प्रेम रस टपकते देखा,
बहुत दिनों बाद मैंने बादल को बरसते देखा।।

रचना- मौलिक एवं स्वरचित

निकेश कुमार ठाकुर
जिला- कटिहार (बिहार)
मो० न०- 9534148597

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 991 Views
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