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29 Nov 2016 · 1 min read

बातों में बनावट सी नज़र आती है

बातों में बनावट सी नज़र आती है
मतलब की मिलावट सी नज़र आती है

फिर देखे मिरा रक़ीब तिरछी नज़र से
आँखों में लगावट सी नज़र आती है

जाने किस ज़माने का ख़त निकाला है
अपनी ही लिखावट सी नज़र आती है

कोई मान ले शायद रौब पैसे का
पारटियां भी दिखावट सी नज़र आती है

निकला देर का है घर से परिन्दा वो
कदमों में थकावट सी नज़र आती है

मुराद हो गई पूरी आज शायद
चौखट पे सजावट सी नज़र आती है

कैसे कट रहा है ‘सरु’ वक़्त ना पूछो
जीने में बनावट सी नज़र आती है

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