Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Sep 2020 · 4 min read

बहरा खानदान – (भाग-2)

अभी तक आपने पढ़ा —

किसी गांव में एक अठ्निया नामक किसान रहता था ।उसके चार बेटे ———-धन्नो के कारण अठ्निया और उसकी पत्नी में तु-तु, मैं-मैं हो जाता है ।

आगे पढें —
मचान अपनी दुकान में सुबह की पूजा अर्चना कर रहा था,तभी एक ग्राहक पूछा तेल है? मचान सिर हिला कर हाँ कहा ।पूजा-पाठ समाप्त करके मुस्कुराते हुए पूछा कितना? ग्राहक-एक अँगुली दिखाया । 1kg चावल लाकर ग्राहक को देते हुए कहा 80 रू किलो है ।ग्राहक- चावल नहीं तेल चाहिए ।मचान एकदम बढिया चाउर (चावल ) है ।ग्राहक- सिर हिला कर चावल नहीं तेल ।मचान- भात एकदम फर्स्ट क्लास भात होगा खा कर देखियेगा न ।ग्राहक-हाथों से इशारा कर कहा तेल,तेल चाहिए ।मचान-शराब !राम!राम! हम भांगों नहीं खाते है शराब! और शराब पी कर समान बेचेंगे राम!राम! आप कैसा बात करते हैं? ग्राहक-झुझलाकर कहता है तेल———। मचान-खाइये कर दीजियेगा न हम आप से झुठ बोलेंगे, आप किसी से पूछ कर देख लीजिए बासमती चाउर का दाम ऐसा ही होगा ।ग्राहक चिढकर समान इधर-उधर फेंकने लगा हम तेल मांग रहे हैं और ये—- ।मचान बेचारा अपना समान बचाने का प्रयास करता है देखिये! देखिए खाइये कर ही दीजियेगा न ।
(दोनों में नोकझोंक होता है ग्राहक गुस्सा में भनभनाता चला गया ।)

टेटरा के सामने एक आदमी आकर पूछा खाली हो? टेटरा सिर हिला कर हाँ कहा ।आदमी- खाली हो तो इधर आओ! उसे एक स्थान पर ले जाकर कहने लगा ।देखो मेरी बेटी की शादी है ।देखो टेन्ट वाला किसी काम से बाहर गया है ।उसे वापस आने में दो-तीन दिन भी लग सकते है ।तबतक तुम खुटा-खंभा गाड़ो । आदमी बीच-बीच में इशारा से कंधे पर हाथ रख कर बता रहा था,मेरी बेटी की शादी है, शादी है समझ रहे हो न, मेरी बेटी की शादी है ।टेटरा सिर हिलाते जा रहा था मानो सब समझ रहा हो।आदमी———— (समझा कर चला गया) ।टेटरा को कंधे पर हाथ रखने का मतलब कुछ और ही समझा ।वह बांस को चीड़कर चचरी बना दिया (जिस पर शव को ले जाया जाता है ) और रोने लगा लाल कक्का! लाल कक्का!बड़का नीक(सभ्य )आदमी थे ।अब क्या होगा उनका घोर में एक ठो बेटी थी उसका वियाह (शादी ) अब कैसे होगा? लाल कक्का! अ हऽऽऽ—-।टेटरा के रोने की आवाज सुनकर आसपास के लोग पहुंच गए ।क्या ?क्या हुआ? टेटरा-लाल कक्का नहीं रहे सब अचंभित होकर कहा क्या? लाल कक्का नहीं रहे?हाँ -हाँ नहीं रहे ——। सब लाल कक्का की अच्छाई की बाते करते हुए रोने लगे ।(धीरे-धीरे कई लोग जुटने लगे ।)

कोलाहल सुनकर लाल कक्का लाठी लेकर कमर पर हाथ रखे टेकते हुए आ पहुंचे और कहने लगे अरे! हम जिन्दा हैं, तुम सब हमको मार क्यों रहे हो अरे!———-।लोगों की नजर लाल कक्का पर पड़ी ।भूत! भुत !भ भागो! भागो! भूत! कोलाहल सुनकर वह आदमी भी आया सामने का दृश्य देख कर बोला-टेटरा! तुम क्या कर दिया? मेरी बेटी की शादी है और तुम—–।इस भगदड़ में सब-के-सब भाग गए और टेटरा पकड़ा गया आदमी थपाक,थपाक कर मारने लगा ।(बेचारा लाल कक्का के भूत को दिखाने का प्रयास कर रहा था किन्तु ——————-। )

सड़क के बीचोंबीच हरखू अपनी धून में नाच रहा था ।उसी समय एक गाड़ी वाला सामने खड़ा हरखू को देखकर कहा हट जाओ! हमें आढहत पर जाना है ।हाथ से इशारा करता है हट जाओ!हरखू हाथ हिलाते हुए देखा और सोचा हमें बैलों को पंखा झेलने के लिए कहा जा रहा है ।यह सोच कर बोला क्या जमाना है! अब बैल को भी गर्मी लगता है उसको भी पंखा होंकना (झेलना ) पड़ता है ।जिसका बैल वो होंकेगा(झेलेगा ) हम क्यों? और फिर झुमने लगता है ।गाड़ीवान फिर बोला हरखू! हट जाओ!अरे देर हो रही है हम पहले से ही देर हो चुके हैं ।हरखू नाचता रहा ।गाड़ीवान क्रोधित होकर बोला हट जा! हमें गुस्सा मत दिलाओ,जब हम गुस्साते हैं तो रौद्र रूप धारण कर लेते हैं, तुम हमें नहीं जानते हो क्या ? हट जाओ! और फिर हाथ हिलाता है ।हरखू बोला हम किसी के बाप के नौकर नहीं हैं जो पंखा होंकेंगे ।क्या कहा? बाप का नौकर? अभी दिखाते हैं, बाप का नौकर क्या होता है, गाड़ीवान ने कहा एक तमाचा मारा ।हरखू हकलाते हुए कहा होंक होंकते हैं और अपने शर्ट को उतार कर बैलों के सामने झेलने लगा ।बैल अपना सिर इधर-उधर हिलाने लगा और गाड़ी हिलने लगी, गाड़ी में से आलू का बोरा गिरने लगा।गाड़ीवान ये-ये क्या किया? हरखू ले तू ही आढहत बन जा सटा-सट मारने लगा ।
संध्या का में फ्फरा खेत पर से लौटा तो अपने पिता से आपबीती सुनाने लगा ।एक ठो सिपाही — ।धन्नो समझी तीखी सब्जी के कारण अब शिकायत की जा रही है वो दौड़ती हुई बोली हम एके ठो मिर्चाय दिए थे —– ।सास देखी अच्छा अब दोनों मिलकर कह रहा है। क्रोधाग्नि लिये चिल्लाते बोली कोई हमरा बेटी को गारी (गाली )देगा तो महाभारत हो जाएगा, हम बेटी के लिए आनसी- मानसी नै सुनेंगे —–।
मचान भी उसी समय आकर बोलने लगता है एक ग्राहक ——-।टेटरा- हम को कहा चचरी बनाने क्योंकि लाल कक्का मर गए हैं——–।बेचारा हरखू भी पंखे की बात बताता है —- अठ्निया को लगा बच्चे बटबारे की बात कर रहे हैं ।वह जोर से चिल्लाया चुप!चुप! चुपचाप रहो! हम बटबारा नहीं करेंगे,एकता में क्या बल है तुम सब क्या जानोगे, इसी अलग-अलग के कारण घर हो, समाज हो, देश हो सब सूखे पत्ते की तरह विखर जाते हैं और छल- कपटी विचार वाला लोग उस पत्ते विहीन विशाल गाछ ( वृक्ष) को मन चाहे ढंग से काट-काट कर उसका अस्तित्व मिटा देता है,मनमुटाव तो पानी के बुलबुले की तरह होते हैं,जो पानी के यथार्थ को बताता है, संघर्ष तो जीवन का परममित्र होता है जो उसे जीने की कला सिखलाती है, हम एक हो कर रहेंगे तब ही ईश्वर प्रदत्त जीवन साकार होगा ।हम बटबारा नै करेंगे, नै करेंगे, नै करेंगे । (समाप्त )
उमा झा

Language: Hindi
16 Likes · 10 Comments · 296 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from उमा झा
View all
You may also like:
(25) यह जीवन की साँझ, और यह लम्बा रस्ता !
(25) यह जीवन की साँझ, और यह लम्बा रस्ता !
Kishore Nigam
बुढापे की लाठी
बुढापे की लाठी
Suryakant Dwivedi
बादल गरजते और बरसते हैं
बादल गरजते और बरसते हैं
Neeraj Agarwal
युवा मन❤️‍🔥🤵
युवा मन❤️‍🔥🤵
डॉ० रोहित कौशिक
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
Rj Anand Prajapati
💐अज्ञात के प्रति-64💐
💐अज्ञात के प्रति-64💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मातृ रूप
मातृ रूप
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
लाश लिए फिरता हूं
लाश लिए फिरता हूं
Ravi Ghayal
बधाई हो बधाई, नये साल की बधाई
बधाई हो बधाई, नये साल की बधाई
gurudeenverma198
*जाता देखा शीत तो, फागुन हुआ निहाल (कुंडलिया)*
*जाता देखा शीत तो, फागुन हुआ निहाल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
काल  अटल संसार में,
काल अटल संसार में,
sushil sarna
मौन मंजिल मिली औ सफ़र मौन है ।
मौन मंजिल मिली औ सफ़र मौन है ।
Arvind trivedi
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की याद में लिखी गई एक कविता
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की याद में लिखी गई एक कविता "ओमप्रकाश"
Dr. Narendra Valmiki
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*
*"रक्षाबन्धन"* *"काँच की चूड़ियाँ"*
Radhakishan R. Mundhra
यादें
यादें
Versha Varshney
"जरा सोचो"
Dr. Kishan tandon kranti
माँ ही हैं संसार
माँ ही हैं संसार
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
जय माता दी -
जय माता दी -
Raju Gajbhiye
किस क़दर
किस क़दर
हिमांशु Kulshrestha
दो शे'र ( अशआर)
दो शे'र ( अशआर)
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
चलो कहीं दूर जाएँ हम, यहाँ हमें जी नहीं लगता !
चलो कहीं दूर जाएँ हम, यहाँ हमें जी नहीं लगता !
DrLakshman Jha Parimal
कोई ज्यादा पीड़ित है तो कोई थोड़ा
कोई ज्यादा पीड़ित है तो कोई थोड़ा
Pt. Brajesh Kumar Nayak
नल बहे या नैना, व्यर्थ न बहने देना...
नल बहे या नैना, व्यर्थ न बहने देना...
इंदु वर्मा
विरान तो
विरान तो
rita Singh "Sarjana"
काव्य-अनुभव और काव्य-अनुभूति
काव्य-अनुभव और काव्य-अनुभूति
कवि रमेशराज
* वक्त की समुद्र *
* वक्त की समुद्र *
Nishant prakhar
रूपेश को मिला
रूपेश को मिला "बेस्ट राईटर ऑफ द वीक सम्मान- 2023"
रुपेश कुमार
23/173.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/173.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मुश्किलें जरूर हैं, मगर ठहरा नहीं हूँ मैं ।
मुश्किलें जरूर हैं, मगर ठहरा नहीं हूँ मैं ।
पूर्वार्थ
Loading...