बहती प्रेम की गंगा
?बहती प्रेम की गंगा, विशेष प्रेमी युगल को समर्पित यह कविता।?
क्या कहूँ तेरे बारे में
बातो की माला सजाने लगा हूँ।
जब से तुम्हें मैंने देखा है
तुम्हे तुमसे भी ज्यादा जानने लगा हूँ।
अरे मत पूछ इस दिल से
तुझे कितना मैं प्यार करने लगा हुँ।
तेरी जगमगाती इस सूरत को देख
मैं खुद से भी ज्यादा चाहने लगा हूँ।।
जब से तुम मेरे जिवन में आई
ऐसा लगा कि मैं सँवरने लगा हु।
दूर रहकर भी तुम मेरे दिल में रहोगी
सच्चे प्रेम का रिश्ता निभाने चला हूँ।।
तेरी स्वीटी स्वीटी मुस्कानों से
मैं दीपक की तरह जलने लगा हूँ।
अमावस की काली रातो में तुम्हे
मैं जुगनू की तरह चमकाने लगा हूँ।।
यू सलामत रहे तुम दोनों की जिंदगी
तुम दोनों के प्यार में मैं खोने लगा हूँ।
मेरे कलम में इतना दम नही क्योंकि
अब मैं सन्धि समास भूलने लगा हूँ।।
?अनु कुमार ओझा