*”बसंत ने बजाई शहनाई”*
“बसंत ने बजाई शहनाई”
पीली धानी चुनरिया ओढ़े ,
बसंत ऋतु की रानी आई।
मन में उमंग तरंग जागे गुनगुनी धूप,
नई दुल्हन की तरह से मुस्काई।
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कोयल कूके मीठी वाणी में ,
डाली डाली झूमते हुए गाई।
टेशू पलाश के पत्ते झड़ते ,
सुरभित हवा खिलती कलियाँ मन को भाई।
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फागुन का आगमन पावन बेला आई।
पीली सरसों खेत खलियानों में ,
धानी चुनरिया ओढाई।
नंदन वन कानन उपवन , भौरे गुनगुनाये तितलियाँ फूलों में मंडराई।
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आमों में बौर पेड़ो पे नव पल्लव छाई।
हरित वसुधा ऋतुराज बंसत ,मन हर्षित कर सुंदर सृष्टि सजाई।
टेशू पलाश महकते फूलों ने,बसंती हवाओं में महके पुरवाई ।
अंतर्मन में खुशियां छाई लो फिर *बसंत ने बजाई शहनाई।
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शशिकला व्यास✍️