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13 Jun 2021 · 1 min read

बरस रही हो बरखा रानी पर अंदाज़ अलग है।

बरस रही हो बरखा रानी पर आग़ाज़ अलग है।
बीते कुछ बरसों से तेरा रंग अंदाज़ अलग है।

कहीं कहीं पर बूंदे झरतीं कहीं कहीं पर पत्थर,
कहीं खुशी की कोंपल उगती दुख हैं कहीं बहत्तर,
भयकारी विष लहरें आतीं लीलने को सब आतुर,
सहलाती दुलराती लहरें मातु कहीं पर बनकर,
रंग नहीं तेरा कोई पर सज्जा राज अलग है,
बीते कुछ बरसों ————————————।

सागर रेगिस्तान बन गए रेत उड़े खेतों में,
बूँद बूँद पानी को तरसे फसल जले खेतों में,
रेत विपुल जलधारा पाकर पगलाए उफ़नाये,
प्यास विकल हो तांडव करती मैदानी स्रोतों में,
कर्कश , कड़क ,प्रकम्पित करती सुर आवाज़ अलग है,
बीते कुछ बरसों ————————————-।

उन्नतशील परम ज्ञानी होने का दम भरते हैं,
पेड़ काटते , राह रोकते पाप कर्म करते हैं,
तेरी भी क्या गलती है जो पाती लौटाती है,
हम भी अपने दुष्कर्मो का उचित दंड भरते हैं,
मनुज हुआ है भोगी जीने का ढंग अंदाज़ अलग है,
बीते कुछ बरसों ————————————।

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